For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उत्तरदायित्व

कार्यालय में कुछ ज्यादा ही गहमागहमी का माहौल था । नये साहब प्रभार ग्रहण कर रहे थे जो कड़े अनुशासन और अपने सख्त स्वभाव के लिए जाने जाते हैं | प्रभार ग्रहण करने के साथ ही उन्होंने पहला सवाल दागा - "कार्यालय की कार्यावधि क्या है ? और, सभी कर्मी कब तक कार्यालय आ जाते हैं |"

"सर कार्यालय अवधि सुबह १० बजे से शायं ५ बजे तक है और सभी कर्मचारी अमूमन ११ बजे तक आ ही जाते हैं."

"अब ऐसा नहीं चलेगा, कल से सबकी उपस्थिति सुबह १० बजे देखी जायेगी | नियम नियम होता है मेरे कार्यकाल में सभी कार्य नियम कानून से ही होगा, आखिर मुझे भी तो ऊपर वालों को मुँह दिखाना होता है |"

आज सभी कर्मचारियों का वेतन बिल हस्ताक्षर कराने बड़े बाबू साहब के पास पहुंचे थे |

"बड़े बाबू, सभीका वेतन बिल बन गया है ना, कोई छूटा तो नहीं ?"
"सर ... सभी के बिल तैयार हैं केवल गोपाल चौकीदार का बिल नहीं बना है, वो पिछले ६ माह से कैंसर का इलाज करा रहा है, उसका परिवार महंगा इलाज कराते-कराते कंगाली की हालत में आ गया है, पिछले महीने तक तो पुराने साहब उसका वेतन बनवा देते थे |"
"तो... ? .. इस बार उसका वेतन बिल क्यों नहीं बना ?"
"सर ! आप ही ने कहा था न, कि नियम नियम होता है, इसलिए इस माह उसका बिल छोड़ दिया गया |"

"बड़े बाबू जाइए और तुरत गोपाल का वेतन बिल बना लाइए, मुझे ऊपर वाले को भी मुँह दिखाना है |"


Views: 917

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 13, 2012 at 3:56pm
आदरणीय गणेश सर...एक अच्छी कहानी के लिये बधाई स्वीकारें। जिस माहौल और मानसिकता की आपने कल्पना की है, एक मानवतावादी अनुशासित समाज वैसा ही हो सकता है। पुनः बधाई।
Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 13, 2012 at 3:07pm

अनुशासन, नियम और व्यवहारिक दृष्टिकोण में परस्पर सामंजस्य बिठाती हुई इस लघुकथा के लिए बधाई ! अंत में ऊपर वाले का जिक्र बहुत भाया !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 13, 2012 at 2:57pm
नियम व्यव्हार और मानवीयता के भेद को अनकहे शब्दों से समझती सुंदर लघु कथा 
हार्दिक बधाई इस रचना के लिए | 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 13, 2012 at 2:21pm

गणेश भाई, आपकी लघुकथा के इशारे झकझोर डालते हैं. यह तथ्य जितना प्रासंगिक है उतना ही प्रासंगिक है कि आप आस-पास की घटनाओं से कथ्य-विन्दु उठाते हैं उन्हें बिम्बात्मक कसौटी पर कस डालते हैं. 

यह लघुकथा ’उत्तरदायित्व’ भी इससे इतर नहीं है. कार्यालय की दैनिकचर्या का एक तथ्य इस लघुकथा के अनूठे बिम्ब का कारण होगा यह देख कर मन मुग्ध हो गया है. ऊपरवाले  का यमक सुलभ प्रयोग आपकी कथ्यात्मकता के प्रति बार-बार आश्वस्त करता जा रहा है.  वाह वाह !!

इस रचना हेतु हार्दिक बधाई, गणेश भाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 13, 2012 at 2:04pm

बहुत सार्थक प्रस्तुति ऊपर वालों और ऊपर वाले  के अस्तित्व की महत्ता को नायक के जीवन में बाखूबी दर्शाया गया है वही नेक आदमी है जो इन दोनों के निर्देश पर चले  दयाभाव व् परोपकार सबसे ऊपर है जिसका हिसाब ऊपरवाला रखता है 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 13, 2012 at 1:47pm

बेहद भावात्मक और प्रेरणा दायक लघुकथा सर जी
नियम परोपकार मैं बाधा नहीं है
साधुवाद इस सुन्दर लघु कथा के लिए

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
23 hours ago
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service