सब कुछ जग में है, नश्वर
एक ही सबका हैं, ईश्वर
हिन्दू ,मुश्लिम, सिख, ईसाई
अनेक धर्मो में बट गया जग
फिर भी मन में है, भटकन l
सच जीवन का दर्पण है
वेद पुराण में वर्णन है
समाहित कर जग कल्याण को
गीता जग में उपस्थित है
मन में फिर क्यूँ भटकन है l
कभी खिलखिला हँसता जब
ओरो को दुःख देकर
कभी असहाय बन
खुद रोता तड़प तड़प कर
कृत्य अपने स्मरण कर l
रात्रि गुजारता करवटे बदल
कभी सोता मस्त मलंग
जीवन भर रहा इस उलझन
क्या कमाया उम्र भर
जब सब कुछ
जग में है नश्वर l
क्या करूँ मैं, क्या कहूँ मैं
क्या सोचे ये चंचल मन
आत्मचिंतन को छोड़ के मैं
लगा रहा अर्जित करने
मान सम्मान और केवल धन
समय गवाया जीवन भर l
जीवन का दस्तूर भुला
सच से अपना पीछा छुड़ा
उस ईश्वर का नाम भुला
रिस्तो का फिर जाल बुन
भुला बैठा मैं सुख की धुन
फिर भी मन में है, भटकन
Comment
राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम...
आपका बहुत बहुत सुक्रिया ......
फूल सिंह
आध्यात्मिक चिंतन अपने आप को खोजता मन ---बेहतरीन भाव प्रणव रचना
पाण्डेय जी सादर प्रणाम
मेरे ब्लॉग पर आपका बहुत बहुत स्वागत है...........
फूल सिंह
गणेश जी सादर नमस्कार,
आपका बहुत बहुत शक्रिया
फूल सिंह
सत्य को रेखांकित करती इस रचना पर साधुवाद |
आपकी रचना के लिये आपका सादर धन्यवाद, फूल सिंहजी.
प्राची जी नमस्कार,
आपका बहुत बहुत धन्यवाद ......
फूल सिंह
शान्ति की तलाश करते अशांत मन , व इस संसार के सभी साधनों को हासिल करने के बाद भी कुछ अनजाना सा खोजते मन के सवालों को दर्शाती इस रचना हेतु बधाई आदरणीय फूल सिंह जी
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