कहाँ बदन पर सजी रंगोली
कहाँ हुआ उसका खनन
कब कोई उसमे विलीन हुआ
कहाँ हुआ पूजा हवन
सब युगों युगों तक निशानी रहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी |
कहाँ प्यासे जिस्म में पड़ी दरारें
कहाँ निर्बाध जल में नहाया बदन
कहाँ इंसां ने बंजर बनाया
कहाँ लहलहाया मदमस्त चमन
जब तलक हवाओं में रवानी रहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी |
कहाँ मेढ़ों ने करे विभाजन
कहाँ जुड़े सांझे आँगन
कहाँ सुने मिलन के गीत
कहाँ बरसा विरह का सावन
इन दस्तावेजों से भरी जिंदगानी रहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी |
कब क्यूँ भड़की उर से ज्वाला
कब क्यूँ बहा क्रोध का लावा
कब कहाँ विध्वंसक प्रलय आई
कब रचा गया इतिहास निराला
जब तलक काल चक्र की मनमानी रहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी |
जब तब कहीं सिंघासन बदला
हर बार नया राज तख़्त बदला
जब तब युग की तारीखें बदली
इस माटी का कोई रंग ना बदला
जब तलक रवि, चाँद की मेहरबानी रहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी ||
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Comment
सराहना हेतु हार्दिक आभार योग्यता जी |
बहुत ही अच्छी रचना है...मिट्टी की अनोखी कहानी को अद्भुत प्रस्तुतीकरण है....
हार्दिक आभार दीपक कुल्लुवी जी
जब तलक हवाओं में रवानी रहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी |
विन्धेश्वरी जी आपका परामर्श सर आँखों पर जरूर कोशिश करुँगी
अशोक कुमार रक्तेला जी हार्दिक धन्यवाद आप सब की प्रतिक्रिया ही मेरी लेखनी का संबल है
बहुत- बहुत हार्दिक आभार रेखा जोशी जी आपको रचना पसंद आई |
जब तलक हवाओं में रवानी रहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी |
सुन्दर रचना. बधाई आ. राजेश कुमारी जी.
कब क्यूँ भड़की उर से ज्वाला
कब क्यूँ बहा क्रोध का लावा
कब कहाँ विध्वंसक प्रलय आई
कब रचा गया इतिहास निराला
जब तलक काल चक्र की मनमानी रहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी |,अति सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीया राजेश जी ,हार्दिक बधाई
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