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प्रलय ,ओ बी ओ में मेरी पचासवीं प्रविष्टि,

छंद:'कुकुभ'  लिखने का पहला प्रयास  (मात्रायें : १६-१४ अंत में दो गुरु)

प्रदूषित करते ना थके तुम ,भड़क गई उर में ज्वाला 

क्रोधित हो कूद पड़ी गंगा ,सब कुछ जल थल कर डाला 

डूब गए घर बार सभी कुछ ,राम शिवाला भी डूबा 

कुपित हो गए मेघ देवता ,कोई नहीं है अजूबा 

राजस्थान ,असम,झाड़खंड,नहीं बची उत्तरकाशी 

प्रलय  कभी ये नहीं सोचती ,कौन धरम कौनू भाषी

पर्वत पर्वत जंगल जंगल ,तुम चलाते  रहे आरी  

खूँ के आँसूं रोते हो अब ,आन पड़ी विपदा भारी 

                 *******

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 3, 2012 at 8:26am

बहुत बहुत शुक्रिया योग्यता मिश्रा जी 

Comment by Yogyata Mishra on September 2, 2012 at 11:55pm

js hv wow fr ds...!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 25, 2012 at 12:28pm

रचना सराहना और बधाई हेतु बहुत बहुत हार्दिक आभार लक्ष्मण लडिवाला जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 25, 2012 at 10:32am

सुन्दर छंद,अच्छे भावों के साथ अर्ध शतक पूर्ण करने पर हार्दिक बधाई 

और बढियां रचना पढने को उपलब्ध कराने हेतु हार्दिक धन्यवाद |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 25, 2012 at 9:15am

अरुण कुमार अभिनव जी आपको काफी दिनों बाद  यहाँ देखकर बहुत ख़ुशी हो रही है आपकी बधाई और रचना की प्रशंसा दिल से स्वीकार हार्दिक आभार 

Comment by Abhinav Arun on August 24, 2012 at 10:37pm

इस अर्द्ध शतक पर हार्दिक बधाई !!

 adarniya rajesh kumari ji प्रभाव पूर्ण और सशक्त रचना !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 24, 2012 at 9:02pm

आदरणीया रेखा जी दिल से आभारी हूँ आपकी प्रतिक्रिया से मेरी लेखनी को संबल मिला 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 24, 2012 at 9:00pm

बहुत बहुत हार्दिक आभार नीरज जी बहुत ख़ुशी हुई आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर 

Comment by Rekha Joshi on August 24, 2012 at 5:47pm

आदरणीया राजेश जी ,पचासवीं रचना प्रकाशित होने पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

पर्वत पर्वत जंगल जंगल ,तुम चलाते  रहे आरी  

खूँ के आँसूं रोते हो अब ,आन पड़ी विपदा भारी ,अति सुंदर रचना ,आपका प्रयास सफल हुआ ,बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 24, 2012 at 10:10am

बहुत बहुत हार्दिक आभार अम्बरीश जी यूँ ही मार्ग निर्देशन करते रहिये 

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