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सुनते हैं, आज़ादी से तो, बहतर रही गुलामी |

सुनते हैं, आज़ादी से तो, बहतर रही  गुलामी |
आज़ादी के बाद हुई है, दुनिया में बदनामी ||
महंगाई को रोक न पाये, जज़िये बड़ा दिये |  
मजहब का हवाला देकर, भाई लड़ा दिये ||
बेशर्मीं से, घोटालों के, हक में भरते हामी |
सुनते हैं, आज़ादी से तो, बहतर रही गुलामी ||
कहने को तो लोक-तंत्र है, लोग नहीं हैं राज़ी |
नेता, चोर, लुटेरे, डाकू, देखो बन गये क़ाज़ी ||
बे-शुमार दौलत इक्कठी, कर ली है बेनामी |
सुनते हैं, आज़ादी से तो, बहतर रही गुलामी ||
नेताओं की मेरे मौला, कर दे नींद हराम |
ताकि आज़ादी से पहले, सा-ना, हो अंज़ाम || 
नेताओं की किस्मत में, लिख दे दाता सूनामी |
सुनते हैं, आज़ादी से तो, बहतर रही गुलामी || 'शशि' जय भारत

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Comment

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Comment by Ashok Kumar Raktale on August 22, 2012 at 12:02am

सादर,

        सुन्दर रचना छंदबद्ध करने का प्रयास किन्तु विचारों में ये विरोधाभास् क्यूँ है? एक तरफ तो गुलामी बेहतर लग रही है और फिर आजादी के पहले के हाल से कातरता भी!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 17, 2012 at 9:58am

सुनते हैं, आज़ादी से तो, बहतर रही  गुलामी |

एकदम नहीं. एक गलत मिसरा. रचना-प्रयास सकारात्मक भाव का वाहक हो.

क्या व्याप्त और रचना में उल्लेख्य दोषों और गलतियों का सबसे बड़ा कारण हम स्वयं नहीं हैं ? हम सब नागरिकों की जागरुकता और मनस-भाव कहाँ और क्यों सुप्तावस्था में पड़े थे जब देश में ऐसे अक्षम लोग शासन योग्य समझे गये ? उँगली बता कर हम दोषमुक्त नहीं हो सकते. 

हमारे देश जैसी आज़ादी विरले देशों को मिलती है. कर्णधारों की अयोग्यता हमारी ही ओढ़ी हुई अयोग्यता है.

रचना-प्रयास के लिये शशिजी आपको हार्दिक धन्यवाद. 

Comment by Rekha Joshi on August 16, 2012 at 8:28pm

बे-शुमार दौलत इक्कठी, कर ली है बेनामी |

सुनते हैं, आज़ादी से तो, बहतर रही गुलामी ||,स्टीक रचना आदरणीय शशि जी ,बधाई 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 16, 2012 at 3:21pm

नेताओं की किस्मत में, लिख दे दाता सूनामी |-----हाहाहा सही बददुआ दे रहे हैं पर लगता है सुनामी भी इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी -----बहुत सार्थक सामयिक लिखा बधाई आपको 

Comment by yogesh shivhare on August 16, 2012 at 9:14am

badhiya .....saab ..wah

Comment by UMASHANKER MISHRA on August 15, 2012 at 9:25pm

आदरणीय शशि मेहरा जी

आज की परिस्थितिती के अनुरूप बेहद सटीक रचना है

आपको हार्दिक बधाई

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