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साहित्यिक भाषा में बोलो बाबाजी

पहले अपने शब्द टटोलो बाबाजी
फिर तुम अपना श्रीमुख खोलो बाबाजी

साहित्य के इस मंच पे गर कुछ कहना है
साहित्यिक भाषा में बोलो बाबाजी

जीवन में सुख दुःख का सीधा मतलब है
थोड़ा हँस लो, थोड़ा रो लो बाबाजी

मान गया मैं, नहीं डरे तुम झूले पर
अब तो अपने कपड़े धोलो बाबाजी

ढाई बज गये, बाबी द्वार न खोलेगी
यहीं किसी फुटपाथ पे सो लो बाबाजी

हाथ में थी वो सारी फ़सल उड़ा डाली
साथ की खातिर भी कुछ बो लो बाबाजी

रोने से क्या संकट कम हो जायेंगे ?
आओ झूमो, नाचो, डोलो बाबाजी

'अलबेला' सब रूखापन मिट जायेगा
जीवन में तुम प्यार तो घोलो बाबाजी

-अलबेला खत्री

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Comment by Albela Khatri on July 27, 2012 at 12:15pm

फिर आपको धन्यवाद अरुण जी.,,

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 27, 2012 at 12:00pm

अलबेला जी फिर एक और अलबेली रचना, बधाई हो मित्र

Comment by Albela Khatri on July 27, 2012 at 11:38am


धन्यवाद राज़ नवादवी  जी...
आभार

Comment by Albela Khatri on July 27, 2012 at 11:37am


धन्यवाद राजेश कुमारी जी...
आभार

Comment by राज़ नवादवी on July 27, 2012 at 11:32am

बहुत अच्छे! मज़ा आ गया! खूब मतला है -

पहले अपने शब्द टटोलो बाबाजी
फिर तुम अपना श्रीमुख खोलो बाबाजी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2012 at 10:56am

एक नए अंदाज के साथ नई शानदार प्रस्तुति बहुत सुन्दर 

Comment by Albela Khatri on July 27, 2012 at 10:04am

Comment by Albela Khatri on July 27, 2012 at 10:02am

आपका कोटि कोटि  धन्यवाद आदरणीय संदीप कुमार पटेल जी,
विनम्र आभार

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 27, 2012 at 9:51am

स्वागत है आदरणीय अलबेला जी !

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 27, 2012 at 9:48am

क्या बात है सर जी ..........................विशेष है जीवन में जो घोलने की बात कही है वो ही अमृत वाणी है और वो आजकल समाप्त होता जा रहा है सिर्फ नाम है दिखावा खूब हो रहा है उसके नाम पर .................बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिए

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