For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिश्वत खाना पाप नहीं है बाबाजी

नयन लड़ाना पाप नहीं है बाबाजी
प्यार जताना पाप नहीं है बाबाजी

अगर पड़ोसन पट जाये तो उसके घर
आना -  जाना पाप नहीं है बाबाजी

बीवी बोर करे तो कुछ दिन साली से
काम  चलाना पाप नहीं है बाबाजी

पत्नी रंगेहाथ पकड़ ले तो उसके
पाँव दबाना पाप नहीं है बाबाजी

रोज़ सुबह उठ, अपनी पत्नी की खातिर
चाय बनाना पाप नहीं है बाबाजी

वेतन से यदि कार खरीदी न जाये
रिश्वत खाना पाप नहीं है बाबाजी

'अलबेला' हर व्यक्ति यहाँ दुखियारा है
इन्हें हँसाना  पाप नहीं है  बाबाजी

-अलबेला खत्री

Views: 1006

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 14, 2012 at 11:46am

उन्हें बताने की जरुरत नहीं है
उनकी नज़र अपने हर चेले पे होती है
जब चेला गलती करता है तो खुद ब खुद उनकी नज़र उसपे पड़ जाती है और फिर होती है सम्यक ज्ञान की वर्षा
जिससे धीरे धीर नौ निहाल (नया पौधा)  बड़ा होने लगता है मजबूत होने लगता है क्यूंकि बहुत से गुरुजन अपने विचारों की खाद डाल डाल के उसे परिपक्व कर देते हैं
इस ओ बी ओ परिवार (बाग़) में वैसे भी चिंतन और मनन के सुद्रढ़ परिवेश में ऐसा अनुकूल वातावरण मिलता है की उसे बढ़ने से कोई ताकत नहीं रोक पाती है

जय हो गुरुदेव की

Comment by Albela Khatri on July 14, 2012 at 11:44am

सम्मान्य श्री शशिप्रकाश सैनी जी,
सर्वप्रथम तो आपकी सराहना के लिए आभारी हूँ
तत्पश्चात आपकी सुन्दरतम रचना के लिए विनम्र बधाई प्रेषित करता हूँ
__वाह वाह वाह

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on July 14, 2012 at 11:43am

साहब आपकी दूरदर्शिता किसी से छिपी नहीं है.. सारी दुनिया कहती है कि आप वहां भी पहुँच सकते हैं जहाँ रेलगाड़ी भी नहीं पहुँचती.. :))

Comment by shashiprakash saini on July 14, 2012 at 11:39am

बहुत बढ़िया सर जी 

आपकी ये रचना होठो पे हँसी ले आई 

अठन्नी चवन्नी का दर्द भूल गए

"

साबुन कंघी लाली लिपिस्टिक 
मेकअप के खर्चे
 और घर मे है झिकझिक 
बीवी जी मांगे बनारसी साड़ी
तनख्वा ने सारी फिर इज्ज़त उतारी
ज़ेबो मे ढूंढा तो क्या मैंने पाया
अठन्नी चवन्नी अठन्नी चवन्नी
गर्मी है आई और छुट्टी है लाई
मुन्ना ने मुन्नी ने मांग लगाई
अब सैर कराओ दिल्ली दिखाओ
मुंबई घुमाओ
नानी और नाना
और दादी और दादा
घूमना यही नहीं इससे ज्यादा
की ज़ेबो मे क्या है
अठन्नी चवन्नी अठन्नी चवन्नी"

 

Comment by Albela Khatri on July 14, 2012 at 11:32am

आभारी हूँ  आदरणीय संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशी वासी' जी,
मैं भी पक्का मारवाड़ी आदमी हूँ......जब देखा कि  कोई मेरी रचना को like नहीं कर रहा है  तो अपना हाथ जगन्नाथ  इस्टाइल में  मैंने सबसे पहले  ख़ुद ही like कर लिया ..वैसे ही जैसे  भिखारी  अपनी ड्यूटी पर जाते समय कुछ सिक्के ख़ुद ही अपने कटोरे में डाल लेता है ताकि लोग प्रभावित हो कर भीख दे दें....हा हा हा हा

और परिणाम कित्ता  अच्छा निकला ....आपने भी तो like किया इसी चक्कर में....

Comment by Albela Khatri on July 14, 2012 at 11:26am

बहुत बहुत धन्यवाद भाई संदीप पटेल जी,
आपके शब्दों में निहित अपनत्व ने बल दिया है

वैसे एक बात कहूँ, कहना मत किसी से....सौरभ पाण्डेय जी को तो बिलकुल मत बताना ....एक हलवाई अच्छी मिठाई बनाने  का दावा तो कर सकता है लेकिन वो मिठाई खाने वाले को पसन्द आएगी इसका दावा हलवाई का बाप भी नहीं कर सकता ...हा हा हा
आपको मेरी मिठाई पसन्द आई...
आभारी है ये  नया नया हलवाई !

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on July 14, 2012 at 11:23am

हुज़ूरे आला जो इंसान दुनिया को हंसा हंसा कर लोटपोट कर रहा हो वो भला पापी कैसे कहला सकता है| :-)) आप किसी के भरोसे न सही मगर दुनिया रामभरोसे चल रही है| उन्हीं के भरोसे मैं भी आपकी ग़ज़ल लाइक कर रहा हूँ| कृपया एक नज़रे करम मेरी ग़ज़ल पर भी फ़रमाएं |

http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:245995

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 14, 2012 at 11:20am

आदरणीय सर जी
आपकी बस यही बात तो दिल को छूओ जाती है
के बस हास्य में भी दर्द जी उठता है
कहीं आज की पीढ़ी का दर्द, कभी रुढ़िवादी विचारों का दर्द
किसे क्या कहें
लेकिन मुस्कुराते हुए भी दर्द बयाँ करना अपना एक अंदाज है कला है
और आपको इसमें महारत हासिल है
नमन आपके सुद्रढ़ सुन्दर विचारों को 

Comment by Albela Khatri on July 14, 2012 at 11:20am

सम्मान्य सीमा अग्रवाल जी,
आपका  बहुत बहुत धन्यवाद
आप आये  तो यों लगा मानो बहार आ गई..........ऐसा सम्वाद फिल्मों में  बोला जाता है..ओ बी ओ पर नहीं, इसलिए मैं ये कहूँगा कि आप आये तो यों लगा मानो.........कोयले की खदान में कोई  जौहरी आ गया हो हीरों की तलाश में...हा हा हा
___आपका हार्दिक स्वागत है जी......और अभिनन्दन भी
___आपकी सराहना सर आँखों पर

कुछ पंक्तियाँ अर्ज़ हैं.
नाम आपका बड़ा निराला सीमा जी !
सबको प्यारा लगने वाला सीमा जी !
सीमा में सी english का, मा संस्कृत का
मतलब 'देखो नहीं'  निकाला  सीमा जी !

____सादर

Comment by Albela Khatri on July 14, 2012 at 10:37am

अपनी ग़ज़ल को ख़ुद ही like करने में बड़ा  मज़ा आता है
और कोई like करे न करे ...अपन किसी के भरोसे क्यों रहें...हा हा हा

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service