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भीड़...महिमा श्री

हां भीड़ में शामिल
मैं भी तो हूँ
रोज
अलसुबह उठ के
जाती हूँ
शाम को आती हूँ
दूर से देखती हूँ
कहती हूँ
ओह देखो तो जरा
कितनी भीड़ है
और फिर
मैं भी भीड़ हो जाती हूँ

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Comment

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Comment by MAHIMA SHREE on May 11, 2012 at 8:58pm

आभारी हूँ संदीप जी

Comment by MAHIMA SHREE on May 11, 2012 at 8:57pm

आदरणीय  अजय जी.. सही कहा आपने ये सुखद  संयोग ही था दो  रचनाये एक ही विषय पे  आ गयी .. धन्यवाद  आपका :)

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 11, 2012 at 8:03pm

bahut khoob kaha aapne

मैं भी भीड़ हो जाती हूँ......bahut umda

Comment by AjAy Kumar Bohat on May 11, 2012 at 7:13pm

Bhaut hi sundar rachna Mahima  ji, yah ek sukhad sanyog hi raha ki ek hi vishay par maine bhi likha aur aapne bhi... :)

Comment by MAHIMA SHREE on May 11, 2012 at 5:20pm
हम तो एक बूँद हैं सागर की सागर में मिले तो सागर बन गए .....उसी तरह भीड़ बन गए.आदरणीया राजेश दी ... तुलनात्मक विवेचना के लिए ह्रदय से आभार . सधन्यवाद
Comment by MAHIMA SHREE on May 11, 2012 at 5:18pm
आदरणीय अविनाश सर .. पसंद करने के और सराहने के लिए आपका ह्रदय से आभार हूँ .
Comment by MAHIMA SHREE on May 11, 2012 at 5:16pm
आदरणीय सौरभ सर क्या कहू आपक सब की प्रतिकिया आशीर्वचनो की तरह बरस रही है और मैं उसमे भींग कर आह्लादित हो रही हूँ ... सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 11, 2012 at 5:11pm

मैं भी भीड़ हो जाती हूँ

हम तो एक बूँद हैं सागर की सागर में मिले तो सागर बन गए .....उसी तरह भीड़ बन गए ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति 

Comment by AVINASH S BAGDE on May 11, 2012 at 4:56pm


कहती हूँ
ओह देखो तो जरा
कितनी भीड़ है
और फिर
मैं भी भीड़ हो जाती हूँ....bheed ka sateek mulyankan Maheema ji...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 11, 2012 at 4:52pm

वाह व्यष्टि का समष्टि में और समष्टि का व्यष्टि में रचना-बसना मुखर होकर उभरा है.  इस सोच और भाव-दशा के लिये हार्दिक धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

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