For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिश्तों की विचित्रता




रात की धूमिल परछाई, 
तारो की चमक समेट लेती है,
दिन की गहरी धूप,
सब कुछ मुरझाये देती है...

न रात का दिन से,
न दिन का तारों से,
और न तारों का रात से,
कोई रिश्ता दिखता है...

देखो तो हर कुछ, 
शून्य में सिमटा है,
सब कुछ अलग होकर भी,
सब एक में सिमटा है...

रेत की तरह रिश्तें,
हाथों से फिसल जाते है,
जो होते हैं आने वाले,
वो काफिले चुपके से गुज़र जाते हैं...

पर विचित्रता को देखिये
रिश्तो और ज़िन्दगी की,  

जहाँ रेत को  को मुठ्ठी  से,
और ,
रिश्तों को ज़िन्दगी से,
बाँधे रखना मुश्किल है,
वही सागर की बूँद को सागर से ,
और,
रिश्तों को दिल से 
जुदा करना मुश्किल है....

रेत के मुट्ठी से,
निकल जाने पर भी,
कण हाथों में रह जाते हैं,
रिश्तो के ज़िन्दगी से,
निकल जाने पर भी,
उनके एहसास दिल में रह जाते है....
 

Views: 595

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 11, 2012 at 8:26pm

इस रचना की पंच लाइन ......

रेत के मुट्ठी से,
निकल जाने पर भी,
कण हाथों में रह जाते हैं,
रिश्तो के ज़िन्दगी से,
निकल जाने पर भी,
उनके एहसास दिल में रह जाते है....
आभार योग्यता जी , पर सच कहूँ तो रचना और कसाव मांग रही है | प्रयास पर आभार |
Comment by AjAy Kumar Bohat on May 11, 2012 at 7:14pm

waah bahut khoob....

Comment by AVINASH S BAGDE on May 11, 2012 at 5:02pm

salagn chitr bhi bolta sa hai...wah...

Comment by AVINASH S BAGDE on May 11, 2012 at 5:00pm

रेत के मुट्ठी से,

निकल जाने पर भी,
कण हाथों में रह जाते हैं,
रिश्तो के ज़िन्दगी से,
निकल जाने पर भी,
उनके एहसास दिल में रह जाते है....yahi saar hai...yahi sarthakta hai..Yogyata ji...
Comment by आशीष यादव on May 11, 2012 at 2:44pm
sundar prastuti. rishto ke sapekshyata ko khub chitrit kiya hai.

badhai.
Comment by MAHIMA SHREE on May 11, 2012 at 10:21am
रेत की तरह रिश्तें,
हाथों से फिसल जाते है,
जो होते हैं आने वाले,
वो काफिले चुपके से गुज़र जाते हैं...
वाह योग्यता जी ... बहुत ही सुंदर अभिवयक्ति .... रिश्तो को कितनी खूबसूरती से परिभाषित किया है ..
बहुत बधाई आपको
Comment by Ashok Kumar Raktale on May 11, 2012 at 6:33am

रेत की तरह रिश्तें,
हाथों से फिसल जाते है,
जो होते हैं आने वाले,
वो काफिले चुपके से गुज़र जाते हैं...

रिश्ते पल में बदल जाते हैं. जिंदगी में रिश्तों की अहमियत और हकीकत से रूबरू कराती सुन्दर रचना बधाई योग्यता जी.

Comment by Yogyata Mishra on May 10, 2012 at 5:20pm

thnq Bhawesh Raipalji N Rajesh Kumariji

Comment by Bhawesh Rajpal on May 10, 2012 at 1:53pm
रेत के मुट्ठी से,
निकल जाने पर भी,
कण हाथों में रह जाते हैं,
रिश्तो के ज़िन्दगी से,
निकल जाने पर भी,
उनके एहसास दिल में रह जाते है
बहुत सुन्दर  ! रिश्ते बनते हैं , रिश्ते बिगड़ते हैं , लेकिन अपनी छाप छोड़ जाते हैं  ! 

अच्छी रचना के लिए बधाई  ! 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 10, 2012 at 1:49pm

वाह योग्यता जी जिंदगी में रिश्तों के लिए अच्छे बिम्ब प्रस्तुत किये हैं सच में रिश्तों कि चुभन दिल में हमेशा रहती है बहुत उम्दा लेखन ...वाह 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
7 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service