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गोरी के आंचल में 

झिलमिल सितारे हैं 

चंदा को सूरज भी 

छिप के निहारे है 

------------------------

रेत के समंदर में 

बूँद एक उतरी तो 

ललचाई नजरों ने 

सोख लिया प्यारी को 

----------------------------

उदय अंत में त्रिशंकु -

बन ! मै लटकता हूँ 

राहु -केतु से कटे भी 

दंभ लिए फिरता हूँ 

---------------------------

चार दिन की जिन्दगी है 

चार पल की यारी है 

चाँद भी खिसक गया 

रात अंधियारी हैं 

-------------------------

कल अंडा था 

बच्चा बनकर 

चीं चीं चूं चूं बोला 

खेला खाया 

उड़ा साथ कुछ 

मै रह गया अकेला 

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Comment

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 26, 2012 at 11:09pm

 प्रिय बंधुगण आप सब का बहुत बहुत आभार ..अपना स्नेह और सुझाव देते रहें .... जय श्री राधे 

भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण  
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2012 at 10:59pm

चार दिन की जिन्दगी है 

चार पल की यारी है 

चाँद भी खिसक गया 

रात अंधियारी हैं 

गोरी के आंचल में 

झिलमिल सितारे हैं 

चंदा को सूरज भी 

छिप के निहारे है 

kitni khubsurti se varnan kiya hai, aadarniya bhramar ji badhai, saadar abhivadan ke saath.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 18, 2012 at 5:52am
अकेले में ही कविता ज्यादा निकलती है, बंधुवर! वियोगी था वो पहला कवि!
नयी श्रोतों से परिचय करते रहे, कविता रूपी गंगा से स्नान करते रहें!  
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 18, 2012 at 12:00am

प्रिय और आदरणीय मित्र गण आप सब का हार्दिक आभार -अपना स्नेह बनाये रखें 

भ्रमर ५ 
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 17, 2012 at 6:47pm
प्रिय भ्रमर जी,
वाह-वाह... यहाँ आते ही आपने अपना रंग जमा दिया है| बेहतरीन कविता के लिए हार्दिक बधाई आपको|
Comment by आशीष यादव on April 17, 2012 at 5:13pm

लाख अपराध कर ले
चाहिए फिर भी
सभ्य समाज 
ये दुनिया की रस्मे ...................

Comment by अरुण कान्त शुक्ला on April 16, 2012 at 6:36pm

चार दिन की जिन्दगी है 

चार पल की यारी है 

चाँद भी खिसक गया 

रात अंधियारी हैं

सुबह भी होगी .. सुन्दर .

Comment by Brij bhushan choubey on April 16, 2012 at 2:35pm

चार दिन की जिन्दगी है 

चार पल की यारी है 

चाँद भी खिसक गया 

रात अंधियारी हैं 

-------------------------बहुत सुन्दर |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 16, 2012 at 12:42pm

रेत के समंदर में 

बूँद एक उतरी तो 

ललचाई नजरों ने 

सोख लिया प्यारी को 

-----bahut sundar kshanikayen likhi hain ek se badhkar ek.

Comment by Abhinav Arun on April 16, 2012 at 12:38pm

चार दिन की जिन्दगी है 

चार पल की यारी है 

चाँद भी खिसक गया 

रात अंधियारी हैं 

shri भ्रमर जी बहुत खूबसूरत रचना हार्दिक बधाई आपको !!

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