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कुछ दोहे.
१- संस्कारित माँ-बाप की,मिलती जिनको सीख.
   नहीं  मांगते  चंदा  वो,  नहीं   मांगते   भीख.
**
२- बांध सकी ना डोर से,कभी न कोई प्रीत.
    आया है तो जायेगा,जीवन की ये रीत.
**
३- लय  से ही संसार है, लय का  नाम  ह्रदय.
    लय का छूटा साथ जो, लय के बिना प्रलय.
**
अविनाश बागडे...नागपुर.

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 7, 2012 at 11:49pm

संस्कारित माँ-बाप की,मिलती जिनको सीख.

 नहीं  मांगते  चंदा  वो,  नहीं   मांगते   भीख.
बिलकुल सत्य और सटीक .आइये संस्कार का दामन घर से पकडायें   बच्चों को ..बधाई 
भ्रमर 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 5, 2012 at 10:18pm

बाँधा दोहे तीन ही, पग ज्यों लाँघे तीन
हृदय मुग्ध उद्वेलता, मन की लहरी बीन.. .

भाई अविनाश जी, आपको सादर बधाइयाँ !


Comment by AVINASH S BAGDE on April 3, 2012 at 7:30pm

आदरणीय अविनाश जी,अनुपम दोहे भ्रात|

छन्दबद्ध वाणी मधुर,पुलकित है मम गात||...dil ko chhoo gai ye bat 'mayank' ji.

Comment by AVINASH S BAGDE on April 3, 2012 at 7:17pm

sabhi shubh-cintako....Rajesh kumari mam,Minu jha mam,Ravindra Nath Shahi sir, Sandeep Dwivedi, "Wahid Kashiwasi ' ji,आशीष यादव ji, PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA sir ji,aur मनोज कुमार सिंह 'मयंक' ji...ka hriday se aabhar.

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 3, 2012 at 2:16pm

आदरणीय अविनाश जी,अनुपम दोहे भ्रात|

छन्दबद्ध वाणी मधुर,पुलकित है मम गात||

आभार और बधाई

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 3, 2012 at 1:36pm

adarniya avinash ji sadar abhivadan, bahut kuch kah diya itne kam shabdon main badhai.

ek anurodh hai ki meri post valvale par main sabhi sathiyon se nivedan kar chuka hoon ki ye rachna kya hai, tukbandi to mere samjh se hai, log mujhse poonchte hain ki ye kya likha. bada gadbad dikh raha hai, aap bhi dekhiye kya hai. agar kuch avishkar hua hai to patent kara loon.

Comment by आशीष यादव on April 3, 2012 at 1:16pm

बहुत ही अच्छे दोहे है|

मेरी बधाई स्वीकार करें|
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 3, 2012 at 12:51pm

बहुत ही सार्थक सुन्दर दोहे आदरणीय अविनाश जी!

Comment by minu jha on April 3, 2012 at 11:42am

जीवन की सच्चाई बयान करते दोहे अविनाश जी,बहुत सुंदर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 3, 2012 at 11:30am

अविनाश जी बहुत उत्तम दोहे रचे हैं तीसरे दोहे की तो बात ही क्या है अविनाश जी पहले दोहे में संस्कारित की जगह सुसंस्कृत माँ -बाप की करके देखें तो मेरे विचार से सही रहेगा अर्थ दोनों के सामान ही हैं पर शब्द सज्जा और पैमाने के द्रष्टि कोण  से  विचार प्रकट कर रही हूँ | 

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