For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


प्यार की मीठी बातों क़े माने ग़ज़ल,..
इश्क करते है जो वो ही जाने ग़ज़ल.
**
गोया गागर में सागर समाया करे,...
चंद लफ़्ज़ों में कहती फ़साने ग़ज़ल....
**
प्यार पर ही टिका है ये सारा जहाँ,...
बात सबको लगी है बताने ग़ज़ल.....
**
रौब अपना जमाने यहाँ बज़्म में,..
छेड़ देते है यूँ  ही सयाने ग़ज़ल.....
**
चांदनी रात में देख उनकी अदा,..,
दिल मचल क़े लगा गुनगुनाने ग़ज़ल....
**
तहजीब का जब से हिस्सा बनी,...
लोग घर में लगे है सजाने ग़ज़ल....
**
...अविनाश बागडे.

Views: 540

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on March 29, 2012 at 4:08pm
चांदनी रात में देख उनकी अदा,..,
दिल मचल क़े लगा गुनगुनाने ग़ज़ल....

वाह वा,
अविनाश जी इस शेर ने तो बस रोक ही लिया और देर तक गुनगुनाता रहा
प्यारी ग़ज़ल के लिए बधाई

गोया गागर में सागर समाया करे,...
चंद लफ़्ज़ों में कहती फ़साने ग़ज़ल....

वाह वाह वा...
Comment by AVINASH S BAGDE on March 28, 2012 at 7:16pm

resptd..Admin,कृपया तिलक जी द्वारा दीये गए बहुमूल्य सुझावों को  मेरे इस ब्लॉग में incorporate कर मुझे अनुग्रहित करें.

1..

प्यार की मीठी बातों क़े माने ग़ज़ल,..

इश्क करते है (करता है) जो वो ही जाने ग़ज़ल.

('करते हैं' बहुवचन है और 'जाने ग़ज़ल' एकवचन इसलिये सुधार आवश्‍यक है)

2..

तहजीब का जब से हिस्सा बनी,...(जब से (स) तहजीब का एक हिस्‍सा बनी)

लोग घर में लगे है सजाने ग़ज़ल....

Comment by AVINASH S BAGDE on March 28, 2012 at 7:11pm

बस उसे ही नसीब है अल्लाह का फ़ज़ल,.....रविन्द्र नाथ जी शुक्रिया.

Comment by AVINASH S BAGDE on March 28, 2012 at 7:09pm
बागी जी,शुक्रिया आपकी हौसला अफजाई का.. 
Comment by AVINASH S BAGDE on March 28, 2012 at 7:09pm
राजेश कुमारी जी,नीरज भाई,डॉ.प्राची जी ,रविन्द्र नाथ जी,प्रदीप कुशवाहा जी.....सभी स्नेही-जनों का ह्रदय से आभार.
Comment by AVINASH S BAGDE on March 28, 2012 at 7:04pm

Saurabh ji,

आदरणीय तिलकराज जी ने विशद चर्चा की है जो सभी के लिये अनुकरणीय है.

is me do ray nahi hai.

shukriya Saurabh ji.

Comment by AVINASH S BAGDE on March 28, 2012 at 7:03pm

"आशा है अन्‍यथा नहीं लेंगे।"

तिलकराज जी ,ओ.बी.ओ. परिवार के एक सदस्य और वो भी जिसे इस परिवार ने हमेशा ही कुछ सिखाया है उसे ही आप हक से कुछ बोल पाए...
अन्यथा किसी को भी आप ये अमूल्य ज्ञान क्यों बाँटते
आपका अंदाज़ दिल को छू गया.
यही आकर ओ.बी.ओ. की सार्थकता सिद्ध होती है...
आपका 
अविनाश..

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 28, 2012 at 8:04am

vaah kya khoob kahi hai ghazal...daad kabool karen.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 27, 2012 at 10:09pm

भाई अविनाशजी, आपकी ग़ज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ.

आदरणीय तिलकराज जी ने विशद चर्चा की है जो सभी के लिये अनुकरणीय है.  सादर.

Comment by Tilak Raj Kapoor on March 27, 2012 at 9:33pm

आपकी इस ग़ज़ल के अरकान हैं: फ़ायलुन्, फ़ायलुन्, फ़ायलुन्, फ़ायलुन्  या 212, 212, 212, 212

कुछ मामूली सुझाव हैं:

प्यार की मीठी बातों क़े माने ग़ज़ल,..

इश्क करते है (करता है) जो वो ही जाने ग़ज़ल.

('करते हैं' बहुवचन है और 'जाने ग़ज़ल' एकवचन इसलिये सुधार आवश्‍यक है)

**

गोया गागर में सागर समाया करे,...

चंद लफ़्ज़ों में कहती फ़साने ग़ज़ल....

**

प्यार पर ही टिका है ये सारा जहाँ,...

बात सबको लगी है बताने ग़ज़ल.....

**

रौब अपना जमाने यहाँ बज़्म में,..

छेड़ देते है यूँ ही सयाने ग़ज़ल.....

**

चांदनी रात में देख उनकी अदा,..,

दिल मचल क़े लगा गुनगुनाने ग़ज़ल....

**

तहजीब का जब से हिस्सा बनी,...(जब से (स) तहजीब का एक हिस्‍सा बनी)

लोग घर में लगे है सजाने ग़ज़ल....

बाकी अशआर में जहॉं आपने वज्‍़न गिराया है ठीक है लेकिन तहजीब के 'जी' में वज्‍़न गिराना संभव नहीं है इसलिये इस शब्‍द को ऐसी जगह रखना पड़ेगा जहॉं बह्र में समा जाये। बदले रूप में 'से' गिराकर 'स' पढ़ा जा सकता है।

आशा है अन्‍यथा नहीं लेंगे।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
3 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
6 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
26 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
29 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
10 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
10 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service