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मैं कौन हूँ ?

ये ही पूछा हैं न ?

ये मेरी ही दस्तक है

जो फैलाती हैं सुगंध

बनती है मकरंद.

जो काफी है

भौरों को मतवाला बनाने को

और कर देती है लाचार

बंद होने को पंखुड़ियों में ही

तुम नहीं देख पाए मुझको

उन परवानों के दीवानेपन में

जो झोंक देते हैं प्राण शमा पर

क्या मैं नहीं होता हूँ

उन ओस की बूंदों में

जो गुदगुदाती हैं

प्रेमियों को

रिमझिम फुहार में

बस जाती हैं

धड़कते दिलों

के द्वार में .

महसूस करो मुझे कभी

कोयल की कूक में

पपीहे की हूक में

कांपते होठों की प्यास में

राह तकती आँखों की आस में

पहचानो मुझे

मैं वो हूँ जो

कभी निकल पड़ता हूँ

जेठ की दुपहरी में भी

मंजिल को पाने को

खुद को मिटाने को

जला नहीं पाती

आग भी तब मुझको

मैं अक्सर दिखाई देता हूँ

हाथों में हाथ लिये

उनके जो रहते हैं मेरे

धडकते सीने में

कभी मैं मजनूं बन कर

हो जाता हूँ कुर्बान

लैला के साथ

ले कर

हाथों में हाथ.

कभी झूल जाता हूँ

सूली पर

येशु बन कर

तो कभी

बजाता हूँ बांसुरी

कान्हा बन कर .

मैं कौन हूँ ?

ये तुम तब ही जान पाओगे

जब करोगे आत्ममंथन

तब सुन पाओगे मेरा क्रंदन

जो तुमनें मुझे दिया है

क्यों बाँध दिया है मुझे

अपनी ही कायरता से

मत पूछो मैं कौन हूँ

मैं तुम्हारा

सच ...

 

रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा 

Views: 683

Comment

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Comment by asha pandey ojha on February 16, 2012 at 5:05pm

bahut hi shandaar rachna 

Comment by Dr Ajay Kumar Sharma on February 11, 2012 at 10:35am

सभी सम्माननीय पाठकों को मेरा हार्दिक नमन . इस रचना को आपनें सराहा है उससे मेरा हौसला बढ़ा है. हृदय से आभार . संपादक मंडल को मेरा धन्यवाद.   

Comment by AjAy Kumar Bohat on February 9, 2012 at 11:18pm

bahut sundar rachna

Badhai ho


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 7, 2012 at 2:26pm

aapko haardik badhaai.

Comment by आशीष यादव on February 7, 2012 at 8:48am
एक इकाई को शक्तिपुञ्ज को विधिवत परिभाषित करवाया है उसी के द्वारा। इस अतिविशिष्ट रचना पर मेरी भी बधाई स्वीकार करेँ।
Comment by AVINASH S BAGDE on February 6, 2012 at 7:16pm

महसूस करो मुझे कभी

कोयल की कूक में

पपीहे की हूक में

कांपते होठों की प्यास में

राह तकती आँखों की आस में

पहचानो मुझे

मैं वो हूँ जो

कभी निकल पड़ता हूँ

जेठ की दुपहरी में भी

मंजिल को पाने को

खुद को मिटाने को.....भावपूर्ण ...डा. अजय जी को मेरी हार्दिक बधाइयाँ..........

मत पूछो मैं कौन हूँ

मैं तुम्हारा

सच ...........सच ...



सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2012 at 6:41pm

इस अतिविशिष्ट रचना पर आने से रह गया था. रचना पूरे विस्तार को एक इकाई देती है. व्यापक सोच और सुगढ़ वैचारिकता को प्रस्तुत करती इस रचना के लिये डा. अजय जी को मेरी हार्दिक बधाइयाँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 25, 2012 at 10:29am

bahut sundar bhaavpoorn rachna.

Comment by राज लाली बटाला on January 23, 2012 at 9:50pm

मत पूछो मैं कौन हूँ

मैं तुम्हारा

सच .. khoob~

Comment by mohinichordia on January 22, 2012 at 7:19am

भावपूर्ण  रचना |महसूस करो मुझे ....बहुत सुन्दर .

कृपया ध्यान दे...

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