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प्यार की बाँसुरी

 

तुम्हारे प्यार की फुहार से 

इस कदर भीगा तन-मन, कि, 

जीवन में फैले शुष्क रेगिस्तान की तपन 

झुलसा न सकी इसे 

आहत न कर सकी

दोपहर की चिलचिलाती धूप,

तुम्हारे प्यार को चुनर बना 

ओढ़ जो लिया था मैंने 

तुम्हारे नशीले गीतों को 

कान्हा की बाँसुरी की तान समझ  
पी गये थे मेरे कर्ण पुट 
प्यार की उस झील के किनारे को 
यमुना का कूल समझ 
गोपी जो बन गई थी मैं |

 

 

     मोहिनी चोरडिया

 

 

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 3:49pm

//झुलसा न सकी इसे 

आहत न कर सकी

दोपहर की चिलचिलाती धूप,

तुम्हारे प्यार को चुनर बना 

ओढ़ जो लिया था मैंने 

तुम्हारे नशीले गीतों को //


बेहतरीन भावों में बंधी हुई अनुपम काव्य कृति ..........कृपया बधाई स्वीकार करें !


Comment by Ambrish Singh Baghel on September 2, 2011 at 8:43am

बहूत ही सुन्दर पंक्तियाँ 

Comment by monika on August 31, 2011 at 1:13am

वाह मोहिनी जी बहुत खूब.

जीवन में फैले शुष्क रेगिस्तान की तपन 

झुलसा न सकी इसे 

आहत न कर सकी

दोपहर की चिलचिलाती धूप,

बहुत ही बढ़िया पंक्तिया हे बधाई स्वीकार करे.

Comment by mohinichordia on August 24, 2011 at 8:44pm

बहुत -बहुत धन्यवाद सौरभ जी ,अरुण कुमार पाण्डेय जी ,आशीष जी .इसी तरह हौसला -अफजाई करते रहिये \

Comment by आशीष यादव on August 24, 2011 at 6:23pm

sundar bhawabhiwyakti hai.

Comment by दुष्यंत सेवक on August 24, 2011 at 5:02pm
bahut hi khubsoorat shabdon se saji ek behtareen rachna aadreya madhuri ji....badhai sweekaren

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 24, 2011 at 3:56pm

विश्वास की डोर बहुत पतली होती है किन्तु उसकी अद्भुत तानता का मर्म समझ पाए, तो, मन-मन कान्हा, तन-तन राधा.. .

इस भाव-प्रवाह पर बधाइयाँ ... .

Comment by Abhinav Arun on August 24, 2011 at 8:46am

एक अप्रतिम मधुर काव्य रचना | इस भावाभिव्यक्ति को शुभकामनाये और मोहिनी जी को बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

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