For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 1212 22/112

इश्क़ में दिल-जले नहीं होते
काश के तुम मिरे नहीं होते

बस ज़रूरत बिगाड़ देती है
लोग वर्ना बुरे नहीं होते

यूँ चमत्कार रोज़ होते हैं
बस हमारे लिए नहीं होते

दोष मत दो नसीब को अपने

दुनिया में ग़म किसे नहीं होते

एक बिजली जला गई थी यूँ
ये शजर अब हरे नहीं होते

तोड़ना दिल मुझे भी आता है
काश तुम फूल-से नहीं होते

'ज़ैफ़' उनका तो हो गया लेकिन
वो कभी 'ज़ैफ़' के नहीं होते

(मौलिक/अप्रकाशित)

Views: 380

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rachna Bhatia on January 16, 2023 at 6:37pm

आदरणिय ज़ैफ़ जी, बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।

Comment by Zaif on January 16, 2023 at 6:11pm

बहुत आभार आपका आ. तपन जी। सादर।

Comment by Tapan Dubey on January 16, 2023 at 4:32pm

ज़ैफ़ भाई बहुत अच्छी गजल हुई है। पड़ कर बड़ा अच्छा लगा बहुत बहुत बधाई।

Comment by Zaif on January 12, 2023 at 7:43pm

आ. लक्ष्मण जी, बहुत आभार।

Comment by Zaif on January 12, 2023 at 7:42pm

आ. समर गुरुजी , बहुत शुक्रिया आपका।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 12, 2023 at 5:48am

आ. भाई जैफ जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on January 11, 2023 at 6:54pm

जनाब ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
16 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
16 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
21 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
23 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service