For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत -४ (लक्ष्मण धामी "मुसाफिर")

खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।
हैं अधर पर प्यास के अंगार आ जाओ।।
*
नित्य बदली छोड़ कर अम्बर।
बैठ  जाती आन  पलकों  पर।।
धुल न जाये फिर कहीं शृंगार आ जाओ।
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।
*
शूल सी चंचल हवाएँ सब।
हो गयीं नीरस दिशाएँ सब।।
है बहुत सूना हृदय संसार आ जाओ।
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।
*   
हो गयी बोझिल पलक जगते।
आस खंडित आस नित रखते।।
कौल को अब कर समन्दर पार आ जाओ।
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।
*
हो गयी जैसे सदी बिछड़े।
दूरियों से सुख हुए दुखड़े।।
फिर मनायेंगे मिलन त्यौहार आ जाओ।
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।
*
स्नेह का ना हो गुणनफल कम।
फिर कहीं बाधा  न हो मौसम।।
हर बहाने को मिला इतवार आ जाओ।
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।
*
प्रेमधन के जो रहे साधक।
कौन निर्धनता बनी बाधक।।
बाँह करके नौलखा सा हार आ जाओ।
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।
*
अब पिघल हिमनद गये देखो।
दिख रहे सब पथ नये देखो।।
भाग्य ने भी अब तजी है रार आ जाओ।
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।
*
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Views: 341

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 10, 2022 at 8:42am

आ. भाई महेंद्र जी, हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 10, 2022 at 8:41am

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। "निमोही" शब्द के बहाने आपकी उपस्थिति से बहुगुणित लाभ हुआ।

//शूल सी चंचल हवाएँ हैं। हो गयीं नीरस दिशाएँ हैं। .................     देखिएगा.. // यहाँ निश्चित तौर पर हैं के बदलाव से प्रभाव अत्यधिक बढ़ा है।

//

फिर मना पाएँ मिलन-त्यौहार आ जाओ। .... देखिएगा.. //
मना पायें का प्रयोग अधिक सकारात्मक भाव पैदा कर रहा है। और गेयता भी बढ़ी है।
*
//स्नेह का मत हो गुणनफल कम।  ....... गीत को गेय कविता का कलेवर न दें .. // निश्चित तौर पर शब्दों के चयन का ध्यान रखूँगा।

//हर घड़ी को हम करें इतवार आ जाओ .........  देखिएगा.. //

हर बहाने को मिला इतवार " में बहानों को तजने का भाव लेकर लिखा था, किन्तु आपने इतवार को फुरसत के पल के रूप में निरूपित कर सकारात्मकता दे दी जो अधिक प्रभावशाली है।

*

//मानते कब कौन पल बाधक ?  //
इस बदलाव से प्रभाव निश्चित बहुगुणित हुआ है।

*

//द्वंद्व के हिमनद गये देखो।  दिख रहे हैं पथ नये देखो।।//

ये बदलाव भी प्रभावशाली हैं। इस मार्गदर्शन के लिए असीम हार्दिक आभार।

Comment by Mahendra Kumar on November 7, 2022 at 7:37pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी रचना के माध्यम से आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी के सार्थक शब्द सुनने को मिले। इस हेतु आपको एक बार पुनः बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 6, 2022 at 8:16pm

इस गीत के निमोही शब्द पर चर्चा हो रही है.

मूलतः हिन्दी के अथवा स्पष्टतः आंचलिक भाषाओं के गीतों का मूल स्वर विरह से विह्वल पात्रों, विशेषकर नायिका, का भावोद्वेग रहा है. प्रस्तुत गीत में भी दैहिक भाव-भावना के उत्कट प्रकटीकरण का मुखर शब्दांकन हुआ है. इस कारण गीत का भाव पक्ष तरल है. ऐसे में कमनीय देसज शब्दों का प्रयोग अरसे से होता रहा है. यहाँ भी हुआ है.

एक तथ्य यह भी है, कि कवि सार्थक, संवेदनापूर्ण कर्म के क्रम में शब्दों के अर्थ से ही नहीं उनकी बनावट से भी खेलने लगता है. यह कविता-कर्म की अत्युच्च दशा है. सक्षम गीतकार तत्सम शब्दों का भी तरलीकरण कर लेते हैं. इसी कारण आदरणीय लक्ष्मण धामी जी को निमोही जैसा शब्द मिल गया, जिसका उन्होंने सहज प्रयोग कर लिया.

ऐसा एक समय के बाद हम-आप भी तो अनायास करने लगते हैं. ऐसे में गीति-प्रतीतियों में निमोही का शब्द स्वीकार्य है. 

प्रस्तुत रचना की कई उपमाएँ, व्यंजनाएँ, लाक्षणाएँ अभिभूत कर रही हैं. मैं मुग्ध हूँ.

किन्तु, प्रस्तुति अवश्य ही तनिक और समय की मांग कर रही है. ऐसा होना तनिक अन्यथा नहीं है, कि, ओबीओ परस्पर सीखने-सिखाने के लिए मंच ही तो प्रदान करता है. इसी दायित्वबोध के कारण आपनी समझ से मैं कतिपय पंक्तियों में हल्के-हल्के परिवर्तन कर अर्थबोध को सान्द्र करने का प्रयास कर रहा हूँ. विश्वास है, आदरणीय लक्ष्मण जी इसे अन्यथा न लेंगें. 

वस्तुतः, गीतों में लयता और इसकी तान अंतर्निहित होती है. अतः पदांत स्वरमूलक गुरु वर्ण का हो तो इनका लालित्य (सांगीतिक पक्ष) बहुगुणित हो जाता है. इस हिसाब से पदांत में ’सब’ का प्रयोग अनगढ़ न होते हुए भी खटकता है.

लेकिन मजा देखिए, वहीं ’अम्बर-पर’, ’कम-मौसम’ या ’साधक-बाधक’ चल जाते हैं. 

 

खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।
हैं अधर पर प्यास के अंगार आ जाओ।।  ........  उद्विग्न प्रत्याशा का कमनीय शब्दांकन हुआ है... वाह वाह ! 
*

नित्य बदली छोड़ कर अम्बर।
बैठ  जाती आन  पलकों  पर।।
धुल न जाये फिर कहीं शृंगार आ जाओ।
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।। ....... क्या बात है ! क्या बात है ! बार-बार इन पंक्तियों को पढ़ने का लोभ कोई संवरण कैसे न करे ! 
*
शूल सी चंचल हवाएँ हैं
हो गयीं नीरस दिशाएँ हैं।।   .................     देखिएगा.. 

है बहुत सूना हृदय-संसार आ जाओ।  
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।
*   
हो गयी बोझिल पलक जगते।
आस खंडित आस नित रखते।।
कौल को अब कर समन्दर पार आ जाओ। ..... टेक का नैरंतर्य श्लाघनीय है, आदरणीय. 
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।
*
हो गयी जैसे सदी बिछड़े।
दूरियों से सुख हुए दुखड़े।।
फिर मना पाएँ मिलन-त्यौहार आ जाओ। .... देखिएगा.. 
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।
*
स्नेह का मत हो गुणनफल कम।   .................. गीत को गेय कविता का कलेवर न दें .. 
फिर कहीं बाधा  न हो मौसम।।    

हर घड़ी को हम करें इतवार आ जाओ .........  देखिएगा.. 

खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।
*
प्रेमधन के जो रहे साधक। 

मानते कब कौन पल बाधक ?  
बाँह करके नौलखा-सा हार आ जाओ। ......... वाह वाह वाह ! .. लाक्षणा का अद्भुत रूप निखर आया है
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।
*

द्वंद्व के हिमनद गये देखो।
दिख रहे हैं पथ नये देखो।।
भाग्य ने भी अब तजी है रार आ जाओ।  ......... निवेदन को सुंदरता से साधा है, आपने. वाह ! 
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।

हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय. 
शुभातिशुभ

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2022 at 9:00am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2022 at 8:59am

आ. भाई महेन्द्र जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2022 at 8:57am

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार।

निमोही शब्द निर्मोही के अपभ्रंश के रूप में रमेश रंजक जी के गीतों में प्रयुक्त हुए देखा था। इसी आधार पर प्रयोग किया है। शेष पूर्ण प्रकाश आ. सौरभ भाई डाल सकते हैं । पहले मैं भी अमोही शब्द ही प्रयोग करना चाह रहा था पर निमोही अधिक आकर्षक लगा। आ. भाई सौरभ पांडेय जी की राय के बाद ही कुछ किया जायेगा...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2022 at 8:48am

आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार । 

निमोही शब्द निर्मोही के अपभ्रंश के रूप में रमेश रंजक जी के गीतों में प्रयुक्त हुए देखा था। इसी आधार पर प्रयोग किया है। शेष पूर्ण प्रकाश आ. सौरभ भाई डाल सकते हैं । सादर...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2022 at 8:35am

आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और आपके प्रशंसाभरे शब्दों से लेखन सफल हुआ। आपके अनुमोदन से गीत लेखन का उत्साह बढ़ा है। स्नेह के लिए आभार।

Comment by Samar kabeer on November 5, 2022 at 6:43pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, अच्छा गीत रचा है आपने, बधाई स्वीकार करें I 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

PHOOL SINGH posted a blog post

सम्राट अशोक महान

चन्द्रगुप्त का पौत्र, जो बिन्दुसार का पुत्र थाबौद्ध धर्म का बना अनुयायीजो धर्म-सहिष्णु सम्राट…See More
yesterday
मनोरमा जैन पाखी left a comment for मनोरमा जैन पाखी
"धन्यवाद आद. योगराज प्रभाकर सर जी"
Sunday
मनोरमा जैन पाखी updated their profile
Sunday
Manoj Misran is now a member of Open Books Online
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"बहतर है शुक्रिया आपका अमित जी सादर"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय Mahendra Kumar जी  1. मतला ग़ज़ल का पहला शे'र और सबसे अह्म हिस्सा होता है। उसे…"
Saturday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
""ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:" अंक-153 को सफल बनाने के लिए सभी ग़ज़लकारों और पाठकों का हार्दिक…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
" जी ठीक है हमको फ़ुर्सत ही नहीं कार-ए-जहाँ से जानाँ "आपके मिलने का होगा जिसे अरमाँ…"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय अमित जी एक और प्रयास देखिएगा सादर हमको फ़ुर्सत ही नहीं कार-ए-जहाँ से मिलती "आपके मिलने…"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय महेंद्र जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय अजय जी। सादर।"
Saturday
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत-बहुत शुक्रिया। संज्ञान ले लिया गया है। सादर।"
Saturday

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service