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ग़ज़ल (जो भुला चुके हैं मुझको मेरी ज़िन्दगी बदल के)

1121 -  2122 - 1121 -  2122 

जो भुला चुके हैं मुझको मेरी ज़िन्दगी बदल के 

वो रगों में दौड़ते हैं ज़र-ए-सुर्ख़ से पिघल के 

जिन्हें अपने सख़्त दिल पर बड़ा नाज़ था अभी तक

सुनी दास्ताँ हमारी तो उन्हीं के अश्क छलके

तेरी बेरुख़ी से निकले मेरी जान, जान मेरी 

मुझे देखता है जब तू यूँ नज़र बदल-बदल के

जो नज़र से बच निकलते तेरी ज़ुल्फ़ें थाम लेतीं 

चले कैसे जाते फिर हम तेरी क़ैद से निकल के 

न मिटाओ ठोकरों से मेरी क़ब्र के निशाँ तुम 

इसी बस्ती आ रहोगे कभी तुम भी काँधे चलके

ये उदास-उदास चहरे ये बुझी-बुझी सी आँखें 

ये मक़ाम कौन सा है तेरे शह्र से निकल के 

जो क़सीदे पढ़ रहे हैं तेरी शान में 'अमीर' अब  

यही रुस्वा कल करेंगे तुझे पैंतरा बदल के 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 10, 2021 at 7:18pm

आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,

संग दिल पर कुछ मिसरे और शेर पेश हैं 
.
तुझे कुछ भी ख़ुदा का तर्स है ऐ संग-दिल तरसा

नज़ीर अकबराबादी 
.
हवा ख़फ़ा थी मगर इतनी संग-दिल भी न थी
क़ैसर-उल जाफ़री
.

करता है क्या ये मोहतसिब-ए-संग-दिल ग़ज़ब
शीशों के साथ दिल न कहीं चूर चूर हों
 
हैदर अली आतिश.
.
इस शहर-ए-संग-दिल को जला देना चाहिए
फिर उस की ख़ाक को भी उड़ा देना चाहिए
 
मुनीर नियाज़ी
.
सादर 
Comment by Samar kabeer on December 10, 2021 at 7:16pm

// समर कबीर साहिब की राय भी जानना चाहूँगा//

"संग" शब्द जिसका अर्थ पत्थर है, फ़ीरोज़ुल लुग़ात की रू से "सँग" पढ़ना लिखना उचित है ।

 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 10, 2021 at 7:09pm

जनाब निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद ज़र्रा नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।

//जिन्हें सँगदिली पे अपनी बड़ा नाज़ था उन्होंने.. यहाँ संग को सग पढना क्या उचित है?//

जी हाँ, मेरे नज़्दीक तो उचित है, शेष समर कबीर साहिब की राय भी जानना चाहूँगा। सादर 

 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 10, 2021 at 7:01pm

आ. अमीरुद्दीन 'अमीर' जी,
ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें.
जिन्हें सँगदिली पे अपनी बड़ा नाज़ था उन्होंने.. यहाँ संग को सग पढना क्या उचित है?
सादर 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 10, 2021 at 5:04pm

मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद ज़र्रा नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।  सादर।

Comment by Samar kabeer on December 10, 2021 at 3:01pm

जनाब अमीरुद्दीन 'अमीर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

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