For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- मसीहा बन के जो आसानियाँ बनाते हैं

वज़्न -1212 1122 1212 22/112

मसीहा बन के जो आसानियाँ बनाते हैं
गिरा के झोपड़ी वो बस्तियाँ बनाते हैं

ये आ'ला ज़र्फ़ हैं कैसे, बुलंदी पाते ही
उन्हें गिराते हैं जो सीढ़ियाँ बनाते हैं

है भूख इतनी बड़ी अब कि छोटे बच्चे भी
किताब छोड़ चुके बीड़ियाँ बनाते हैं

ग़िज़ा जहान में उनको नहीं मयस्सर क्यों
जो फ़स्ल उगा के यहाँ रोटियाँ बनाते हैं

उन्हें नसीब ने घर जाने क्यों दिया ही नहीं
सभी के वास्ते जो आशियाँ बनाते हैं

मदद के नाम पे मा'ज़ूर का उड़ा के मज़ाक़
ख़बर-नवीस यहाँ सुर्ख़ियाँ बनाते हैं

है 'आरज़ू' न हों नज़दीक वो किसी के भी
दिलों के दरमियाँ जो दूरियाँ बनाते हैं

-©अंजुमन 'आरज़ू'

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 527

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 6, 2021 at 6:17pm

आ. आरज़ू जी,

ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है..
मतला बहुत कमज़ोर लग रहा है..
झोपड़ी टूट के बस्ती कैसे बन सकती है.. ??
शायद जल्दबाज़ी में कही हुई ग़ज़ल है..
रचते रहिये..बधाई 

Comment by Anjuman Mansury 'Arzoo' on November 3, 2021 at 12:07pm

 मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर साहब आदाब, ग़ज़ल तक पहुंचने और खूबसूरत इस्लाह के लिए तहे दिल से शुक्रिया सुधार की कोशिश करती हूं

Comment by Anjuman Mansury 'Arzoo' on November 3, 2021 at 12:06pm

उस्ताद मोहतरम समर कबीर जी आदाब, ग़ज़ल तक पहुंचने और खूबसूरत इस्लाह के लिए तहे दिल से शुक्रिया, सुधार की कोशिश करती हूं

Comment by Samar kabeer on October 28, 2021 at 8:42pm

मुहतरमा अंजुमन 'आरज़ू' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'मसीहा बन के जो आसानियाँ बनाते हैं'

आसानियाँ बनाई नहीं जातीं, ग़ौर करें ।

'है भूख इतनी बड़ी अब भी कि छोटे बच्चे'

ये मिसरा बह्र में नहीं,सुधार का प्रयास करें ।

'ग़िज़ा जहान में उनको है ला-मयस्सर क्यों'

इस मिसरे का शिल्प और वाक्य विन्यास ठीक नहीं,यूँ कर लें:-

'ग़िज़ा जहान में उनको नहीं मयस्सर क्यों'

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 26, 2021 at 9:27am

मुहतरमा अंजुमन 'आरज़ू' साहिबा आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।

'मसीहा बन के जो आसानियाँ बनाते हैं

 लगा के आग वही बस्तियाँ बनाते हैं'     मतले के मिसरों में रब्त का अभाव है, सानी मिसरे में क़ाफ़िया रदीफ़ से इन्साफ़ नहीं कर रहा है, ग़ौर फ़रमाएं... 'लगा के आग वही बस्तियाँ जलाते हैं' हो रहा है।

'है भूख इतनी बड़ी अब भी कि छोटे बच्चे'    ये मिसरा बह्र में नहीं है, वाक्य विन्यास भी ठीक नहीं है ....

'है भूख इतनी बड़ी अब कि छोटे बच्चे भी' करने से बह्र और शिल्प ठीक हो जाएंगे।

'ग़िज़ा जहान में उनको है ला-मयस्सर क्यों'  'नहीं' के वज़्न पर 'है ला' यहाँ मुनासिब नहीं है, देखियेेगा....

'ग़िज़ा जहान में उनको नहीं मयस्सर क्यों'    (विकल्प मौजूद हो तो मात्रा गिराने से बचनाा चाहिए)

'उन्हें नसीब ने घर जाने क्यों दिया ही नहीं

सभी के वास्ते जो आशियाँ बनाते हैं'.           इस शे'र का भाव स्पष्ट नहीं है।   सादर। 

Comment by Shyam Narain Verma on October 24, 2021 at 2:08pm
नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service