For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बेवज़्ह मुझे रोने की आदत भी बहुत थी...( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

221-1221-1221-122

बेवज़्ह मुझे रोने की आदत भी बहुत थी
पर मुझको रुलाने में सियासत भी बहुत थी (1)

माज़ी को भुला कर मियाँ अच्छा किया मैंने
रखने में उसे याद अज़ीयत भी बहुत थी (2)

मैंने भी बुझा दी थीं वो जलती हुई शम'एँ
कमरे में हवाओं की शरारत भी बहुत थी (3)

है मुझसे अदावत उन्हें अब हद से ज़ियादा
था और ज़माना वो महब्बत भी बहुत थी (4)

ज़ालिम की शिकायत भी करें तो करें किससे
हाकिम की उसी पर ही इनायत भी बहुत थी (5)

दिखने में बहुत सख़्त था पत्थर की तरह वो
फूलों सी मगर उनमें नज़ाक़त भी बहुत थी (6)

वैसे भी अलग होना था इक दिन हमें 'सालिक'
थे पास मगर हम में मसाफ़त भी बहुत थी (7)

* मौलिक एवं अप्रकाशित

©सालिक गणवीर

Views: 1002

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 18, 2021 at 9:46pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब,

 //मतले पर आपकी टिप्पणी से मैं इत्तेफ़ाक़ नहीं रखता//

भाई साहब बिल्कुल ज़रूरी नहीं है कि आप इत्तेफ़ाक़ ही रखें, आपका नज़रिया आप ही समझ सकते हैं, मगर अपनी रचना पर पाठकों को टिप्पणी और विश्लेषण करने की जो अनुमति आपने दे रक्खी है उस लिबर्टी के तहत मतले को आपके नज़रिए से मैं समझना चाहता हूँ। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि 

जो बेवज्ह ही रोने का आदी हो उसे रुलाने के लिए सियासत-दानों को जद्दोजहद करने की क्या ज़रूरत थी? इस में ज़रूर कोई बारीक नुक़्ता होगा जो सिर्फ़ आप ही बता सकते हैं। 

'बेवज़्ह मुझे रोने की आदत भी बहुत थी / पर मुझको रुलाने में सियासत भी बहुत थी'  

शेष बिन्दुओं/शंकाओं पर मैं भी गुणीजनों के बेशक़ीमती नज़्रियात व मशविरों का मुन्तज़िर रहूँगा।  सादर। 

 

 

Comment by सालिक गणवीर on August 17, 2021 at 7:30pm

मुहतरम Chetan Prakash ' साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका तह -ए -दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।

Comment by सालिक गणवीर on August 17, 2021 at 7:30pm

मुहतरम  अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका तह -ए -दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। मतले पर आपकी टिप्पणी से मैं इत्तेफ़ाक़ नहीं रखता मुहतरम ,मुआफ़ करें। मद्दाह साहिब की लुग़त में अज़ीयत लिखा है इसलिए मैंने भी यही इस्तेमाल किया है. आदरणीय। अगर उस्ताद जी भी ऐतराज करते हैं तो दुरुस्त कर दूंगा। वह का बहुवचन वे या वो होता है साहिब तो वो का सम्बन्ध तो उनमें ही होना चाहिए। तनाफ़ूर तब होता जब पहले शब्द का आखिरी अक्षर और असके बाद के शब्द का प्रथम अक्षर समान होता। सादर।

Comment by Chetan Prakash on August 17, 2021 at 11:45am

आदाब, सालिक गणवीर साहब, ग़ज़ल का बेहतर प्रयास है, किन्तु 'अमीर' साहब ने जो सुझाया, उससे मैं सहमत हूँ! 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 17, 2021 at 12:53am

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ख़ूबसूरत और मे'यारी ग़ज़ल कहने के प्रयास के लिए आपको मुबारकबाद पेश करता हूँ। माज़रत के साथ अर्ज़ करना चाहता हूँ कि, 

' बेवज़्ह मुझे रोने की आदत भी बहुत थी
पर मुझको रुलाने में सियासत भी बहुत थी'     इस शे'र के मिसरों में रब्त नहीं है क्योंकि सानी मिसरे में कही गई बात ऊला में आये लफ़्ज़ 'बेवज्ह' की वज्ह से पस्त, कमज़ोर और बेमानी हो जाती है, यानि ऊला मिसरा सानी में कही जा रही बात को तक़्वियत नहीं दे रहा है। चाहें तो ऊला यूँ कर सकते हैं:

'कहते हैं मुझे रोने की आदत भी बहुत थी'

'रखने में उसे याद अज़ीयत भी बहुत थी'      इस मिसरे में सही लफ़्ज़ 'अज़िय्यत' है। 

'हाकिम की उसी पर ही इनायत भी बहुत थी'   इस मिसरे में 'ही' के बदले 'जो' कहना ज़्यादा मुनासिब होगा।

'दिखने में बहुत सख़्त था पत्थर की तरह वो

 फूलों सी मगर उनमें नज़ाक़त भी बहुत थी'     इस शे'र में शुतरगुर्बा दोष है, ग़ौर कीजियेगा। 

'थे पास मगर हम में मसाफ़त भी बहुत थी'      इस मिसरे में तनाफ़ुर है, चाहें तो यूँ कर सकते हैं:

'कहने को थे हम साथ मसाफ़त भी बहुत थी'     सादर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
14 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
15 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। पंचकल त्रिकल के प्रयोग…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई के साथ-साथ धन्यवाद भी। कि, इस पटल पर, इस खुले आयोजन…"
16 hours ago
Chetan Prakash commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"वाकई  खूबसूरत शुद्ध हिन्दी गजल हुई, आदरणीय! "कर्म हम रणछोड  के अनुसार भी करते…"
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service