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२२१/२१२१/१२२१/२१२


तकरार करते करते ही सावन गुजर गया
मनुहार करते करते ही सावन गुजर गया।१।
*
बाधा मिलन में उनसे जो हालात थे उलट
अनुसार करते करते ही सावन गुजर गया।२।
*
हम खुद में व्यस्त  और  वो औरों में व्यस्त थे

व्यवहार करते  करते  ही  सावन  गुजर गया।३।

*
इस पार हम थे बैठे तो उस पार थे सजन
नद पार करते करते ही सावन गुजर गया।४।
*
उनसे मिलन की बात थी लेकिन हमें ये मन

तैय्यार करते  करते  ही  सावन  गुजर गया।५।
*
उस पर कहा सखी ने जो सजना सँवरना भी

शृंगार करते  करते   ही  सावन  गुजर  गया।६।

*
वो लोग खुशनसीब थे जिन का यूूँ रार बिन
बस प्यार करते करते  ही सावन गुजर गया।७।

मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 26, 2021 at 8:34pm

आ. भाई बृजेश कुमार जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 26, 2021 at 8:16pm

आदरणीय धामी जी बड़ी रदीफ़ पर बड़ी ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है...सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2021 at 6:51pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2021 at 6:40pm

आ. भाई सौरभ जी, सादर ।गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार। इंगित मिसरों के लिए सुझाए गये बदलाव बेहतरीन हैं । 

//श्रृंगार .. ये कौन सी अक्षरी है, भाई ?//

फोन में सेटिंग गड़बड़ होने से शृंगार शब्द टाइप 

नहीं हो पाता। पहले भी किसी रचनाकार की रचना पर इस बारे आपकी टिप्पणी ध्यान में है । पुनः सजग करने के लिए आभार..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2021 at 2:12pm

करते-करते ही सावन गुजर गया जैसे रदीफ पर ग़ज़ल कहना अच्छा लगा, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. 

हम खुद में व्यस्त और वो औरों में व्यस्त थे .. क्या कमाल का मिसरा है.  इसमें इतवार का होना कुछ जम नहीं रहा. 

हम तो ’व्यवहार करते-करते ही सावन के गुजर जाने की बात करते. शेर बनिस्पत अच्छा निकल जाता. 

उनसे मिलन की बात थी हमको मगर ये मन .........  उनसे मिलन की बात थी लेकिन हमें ये मन .. 
तैय्यार  करते  करते  ही  सावन  गुजर  गया 

श्रृंगार .. ये कौन सी अक्षरी है, भाई ?

इसे शृंगार लिखा करें, जो इस शब्द की शुद्ध अक्षरी है. नेट पर जो श्रृंगार  लिखा मिलता है, या हृदय की जगह ह्रदय लिखा मिलता है, ये सारी अशुद्ध अक्षरियाँ हैं जो लेखकों की लापरवाही के कारण, या ’चलता है’ की ओट में प्रचलित हो गयी हैं.  

शुभ-शुभ

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2021 at 10:34pm

आ. भाई समर जी, सादर आभार

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2021 at 10:33pm

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन ।गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार ।

Comment by Samar kabeer on August 17, 2021 at 2:03pm

आप मुतमइन हैं तो रहने दें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on August 17, 2021 at 12:57pm

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" जी। बेहतरीन ग़ज़ल।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 16, 2021 at 9:03pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थितिऔर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।

//इतवार करते  करते  ही// को फुर्सत के पल निकालने के प्रयास के संदर्भ में लेते हुए लिखा है । यदि असंगत लग रहा हो और अनुचित हो तो बदलने का प्रयास करूँगा। मार्गदर्शन करें ।

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"सादर"
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