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उधर जब तपन है..( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

 

122 122

उधर जब तपन है
इधर भी अगन है

अदू साथ तेरे
मुझे क्यों जलन है

ये क्यों मीठी मीठी
सी दिल में चुभन है

वही दुश्मन-ए-जाँ
वही जान-ए-मन है

सुखी वो नहीं पर
दुखी आज मन है

जहाँ फूल थे कल
वहाँ आज गन है

यहाँ झूठ सच है
यही तो चलन है

कहो कुछ भी'सालिक'
तुम्हारा दहन है

*मौलिक एवं अप्रकाशित.

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Comment

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Comment by सालिक गणवीर on October 15, 2020 at 10:06am

आदरणीय समर कबीर साहिब
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.आपकी इस्लाह से ग़ज़ल की ख़ूबसूरती बढ़ गई है मुुुहतरम.शुक्रिय: सलामत रहेंं.

Comment by सालिक गणवीर on October 15, 2020 at 10:02am

आदरणीया रचना जी

अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.

Comment by Rachna Bhatia on October 14, 2020 at 10:45am

आदरणीय सलिक गणवीर जी, नमस्कार। बेहतरीन ग़ज़ल हुई।सर् की इस्लाह के बाद ग़ज़ल निखर गई है।

Comment by Samar kabeer on October 13, 2020 at 9:03pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है, बधाई स्वीकार करें ।

'सभी ग़ैर साथी
मुझे क्यों जलन है'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं हुआ,उचित लगे तो ऊला यूँ कह सकते हैं:-

'अदू साथ तेरे'

'न काँटा लगा है
मगर क्यों चुभन है'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ, उचित लगे तो यूँ कह सकते हैं:-

'ये क्यों मीठी मीठी

सी दिल में चुभन है'

'कहो यार 'सालिक''

इस मिसरे को उचित लगे तो यूँ कह सकते हैं:-

'कहो कुछ भी 'सालिक' '

Comment by सालिक गणवीर on October 11, 2020 at 10:28pm

भाई निवेश 'नूर' साहिब

सराहना के लिये आभारी हूँ मान्यवर.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 7, 2020 at 9:03am

आ. सालिक जी,
छोटी बहर में अच्छा प्रयास हुआ है.. थोडा और वक़्त देते तो कई शेर और निखर कर आते ..
प्रयास हेतु सराहना और बधाई स्वीकार करें,
सादर 

Comment by सालिक गणवीर on October 6, 2020 at 6:07pm

भाई लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.

Comment by सालिक गणवीर on October 6, 2020 at 6:06pm

आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर' साहिब
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 6, 2020 at 5:28pm

आदरणीय सालिक गणवीर जी जी आदाब, छोटी बह्र में ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें। सादर। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 6, 2020 at 1:57pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

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