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जन के हाथों थमी थालियाँ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२


झण्डे बैनर टँगे हुए हैं और निशसतें ख़ाली हैं
भाषण  देने  वाले  नेता  सारे  यार  मवाली हैं
**
इन के दिन की  बातें  छोड़ो रातें तक मतवाली हैं
जनसेवक का धार विशेषण रहते बनकर माली हैं
**
कहते  तो  हैं  नित्य  ग़रीबी  यार  हटाएँगे  लेकिन
जन के हाथों थमी थालियाँ देखो अबतक ख़ाली हैं
**
देश की जनता तरस रही है देखो एक निवाले को
पर  ख़र्चे  में  इन की  आदतें  हैराँ  करने वाली हैं
**
काम न करते कभी सदन में देश को उन्नत करने का
किन्तु  ख़ज़ाने  इन के  कारण  सारे  यारो  ख़ाली हैं
**
श्वेत लिबासों में रहते पर मन की कालिख नहीं गयी
हर नेता ने  जनधन  पर  नित  काली नज़रें डाली हैं
--
(*निशसतें = बैठने की जगह)

मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 444

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Comment by Samar kabeer on October 13, 2020 at 8:29pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल कही आपने, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 5, 2020 at 6:42pm

आ. भाई तेजवीर जी जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थित और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 5, 2020 at 6:40pm

आ. भाई चेतन प्रकाश जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थित और उत्साहवर्धन के लिए आभार । आपको गजल अच्छी लगी लेखन सफल हुआ। सादर..

Comment by TEJ VEER SINGH on October 5, 2020 at 11:17am

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।बेहतरीन गज़ल।**
देश की जनता तरस रही है देखो एक निवाले को
पर  ख़र्चे  में  इन की  आदतें  हैराँ  करने वाली हैं

Comment by Chetan Prakash on October 5, 2020 at 8:09am

कृपया बधाई, स्वीकार करे, पढ़े।

Comment by Chetan Prakash on October 5, 2020 at 8:04am

समसामयिक परिदृश्य पर अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बंधुवर, लक्ष्मण धामी जी, बझाई स्वीकार करे। दोनों मतले विशेष रूप से सीधे दिल पर दस्तक देते हैं।

कृपया ध्यान दे...

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