For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (और कितनी देर तक सोयेंगें हम)

पल सुनहरी सुबह के खोयेंगें हम
और कितनी देर तक सोयेंगें हम।

रात काली तो कभी की जा चुकी
अब अँधेरा कब तलक ढोयेंगे हम।

जुगनुओं जैसा चमकना सीख लें 
रोशनी के बीज फिर बोयेंगे हम।

बीत जाता है समय जैसा भी हो
क्यों हँसेंगे और क्यों रोयेंगें हम।

आदतें अहसां-फरामोशी की हैं
चाँदनी को धूप से धोयेंगें हम।

काम बचपन में किये जो फिर करें
क्या कभी इतने बड़े होयेंगें हम।

#मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1098

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अजय गुप्ता 'अजेय on September 23, 2020 at 10:04pm

आपकी आमद से मन को अतीव प्रसन्नता हुई समर साहब। आपका बहुत बहुत शुक्रिया। जी मुख्य ग़ज़ल से इस शेर को हटा दिया ही समझिये। पर यहाँ से नहीं हटा रहा हूँ ताकि बाद में पढ़ने वालों को संदर्भ का पता चलता रहे।

Comment by Samar kabeer on September 23, 2020 at 12:19pm

जनाब अजय गुप्ता जी, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, और चर्चा भी अच्छी हुई, बधाई स्वीकार करें।

अंतिम शैर हटाना ही सहीह फ़ैसला है ।

Comment by अजय गुप्ता 'अजेय on September 22, 2020 at 1:57pm

आदरणीय नीलेश जी, ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया उत्साह बढ़ाती है। आप का यह कहना कि "यदि पुनर्विचार की संभावनाएं शेष हों" मेरे साथ अन्याय है क्योंकि आप सब के मार्गदर्शन के लिए मुझे शेष के आश्रित होने की आवश्यकता नहीं। मैं तो ग़ज़ल की प्रारंभिक जानकारी रखने वाला व्यक्ति हूँ। आप सब का सुझाव आदेश की तरह है। होयेंगें वाले मिसरे को हटाना ही उचित समझूँगा।

रही बात धोयेंगें इत्यादि की तो मुझे लगा कि धोया, रोया, खोया से धोयेंगें इत्यादि बनेगा। परामर्श की अपेक्षा है।

Comment by अजय गुप्ता 'अजेय on September 22, 2020 at 1:53pm

बहुत बहुत आभार चेतन जी

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 21, 2020 at 7:47pm

आ. अजय जी,
अच्छी ग़ज़ल के साथ अच्छी बहस भी पढने को मिली.. एक आग्रह है कि धोयेंगे ..ढोयेंगे आदि को धोएंगे रोएंगे आदि लिख लें..रही बात होयेंगे की तो सहीह शब्द होंगे होगा अत: यदि पुनर्विचार की संभावनाएं शेष हों तो विचारियेगा..
मैंने हाल ही में अपनी एक पुरानी ग़ज़ल में दवाईयों को दवाओं किया है.
सादर   

Comment by Chetan Prakash on September 21, 2020 at 6:34pm

श्री अजय गुप्ता जी, आप मुझसे सहमत हो सके, आपका आभारी हूँ ! आपका क्वाफी वस्तुतः ओएंगे की बंदिश लिए हैं, सो अब आप सही कह रहे हैं, अतः आपका रदीफ हम ही है। सधन्यवाद !

Comment by अजय गुप्ता 'अजेय on September 21, 2020 at 12:15pm

सालिक जी सही कहा आपने। मगर सामान्य बोलचाल में बहुत बार हम होयेंगें बोल दिया जाता है। पर आपकी बात का संज्ञान लेते हुए इसे संशोधित करने का प्रयास करूंगा

Comment by अजय गुप्ता 'अजेय on September 21, 2020 at 12:13pm

आदरणीय चेतन जी, आपकी बात सर माथे पर। तो रदीफ़ को हम ले लीजिए और क़ाफ़िया ओयेंगें हो जाएगा।

क्या दुरुस्त है?

Comment by Chetan Prakash on September 20, 2020 at 9:25pm

श्री अजय गुप्ता जी, मेरी जानकारी के अनुसार हर सानी मिसरे में जिस समान मात्रा ( स्वर -ध्वनि) की आवृत्ति किसी व्यंजन से जुड़कर हो, यानि बंदिश हो कााफिया होता है। सारे क्वाफी एक ही स्वर( मात्रा ) से पिन्हा होते है।सो, आपका काफिया 'ओ' की बंदिश लिए है, बात समझ में आती है। लेकिन रदीफ स्वतन्त्र सार्थक शब्द अथवा शब्द समूह होता है, "येंगे हम" पूर्णतया निर्रथक है, अतः बंधुवर रदीफ नहीं हो सकता। धन्यवाद !

Comment by सालिक गणवीर on September 20, 2020 at 7:21pm

भाई अजय गुप्ता जी

सादर अभिवादन

अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाइयाँ स्वीकार करें.आखिरी क़ाफ़िया में आपने 'होयेंगे ' शब्द का इस्तेमाल किया है, क्या ऐसा कोई शब्द होता है?.मैंने होंगे सुना/लिखा और पढ़ा है.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
11 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
20 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service