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क्या जाने किस जनम का सिला दे गया मुझे..( ग़ज़ल : सालिक गणवीर)

221 2121 1221 212

क्या जाने किस जनम का सिला दे गया मुझे
था बेगुनाह फिर भी सज़ा दे गया मुझे

कैसे यक़ीन कीजिए ग़ैरों की बात का
समझा था जिसको अपना दगा दे गया मुझे

लम्बी हो उम्र मेरी दुआ मांँगता रहा
मरने की मुफ़्त में जो दवा दे गया मुझे

उसके इशारों को मैं समझ ही नहीं सका
गूंँगा था आदमी जो सदा दे गया मुझे

ग़ज़लें पुरानी ले गया आया था ख़्वाब में
इनके इवज में घाव नया दे गया मुझे

भीगा था जिस्म मेरा दिसम्बर की रात में

तुहफ़े में धूप की वो रिदा दे गया मुझे

*मौलिक एवं अप्रकाशित.

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Comment by Samar kabeer on September 8, 2020 at 11:12am

//मतले की शुरुआत न केबजाय ना से बेहतर होती//

उर्दू शाइरी में 'न' को 1 पर ही लिया जाता है ।

Comment by सालिक गणवीर on September 8, 2020 at 10:18am

भाई चेतन प्रकाश जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ. सादर एवं सप्रेम।

Comment by Chetan Prakash on September 8, 2020 at 8:45am

   बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है, जनाब, सालिक गणवीर साहब! मतले की शुरुआत न केबजाय ना से बेहतर होती !

Comment by सालिक गणवीर on September 7, 2020 at 11:15pm

आदरणीया डिंपल शर्मा जी
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.

Comment by सालिक गणवीर on September 7, 2020 at 11:14pm

आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर'साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.आखिरी के दोनो अश'आर हटा दूंगा जैसा कि उस्ताद जी की भी इस्लाह हैै लेकिन अगर आप मदद करेंगे तो  छटा  शैर भरती का शैर कहलाने से बच जाएगा आदरणीय. इस्लाह अपेक्षित है.

Comment by Dimple Sharma on September 7, 2020 at 4:44pm

आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्ते, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय ।

Comment by Samar kabeer on September 7, 2020 at 4:39pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'न जाने किस जनम का सिला दे गया मुझे'

ये मिसरा बह्र में नहीं है, 'न' की जगह "क्या" कर लें,बह्र में हो जाएगा ।

'जो अपना आदमी था दगा दे गया

मुझे'

इस मिसरे में 'आदमी' शब्द उचित नहीं,मिसरा यूँ कह सकते हैं:-

'समझा था जिसको अपना दग़ा दे गया मुझे'

 

'मैं उसके इशारात समझ ही नहीं सका'

ये मिसरा बह्र में नहीं है,यूँ कर लें:-

'उसके इशारों को मैं समझ ही नहीं सका'

'एवज में फिर से घाव नये दे गया मुझे'

इस मिसरे में सहीह शब्द "इवज़" 12 है, और क़ाफ़िया भी ग़लत है,यूँ कह सकते हैं:-

'उनके इवज़ में घाव नया दे गया मुझे'

'अंदर सुलग रहा था जो बरसों से आज तक
आया तो था बुझाने हवा दे गया मुझे

ये शैर भर्ती का है हटा दें ।

इसके बाद के अशआर में रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं हो सका, हटा दें ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 7, 2020 at 2:04pm

आदरणीय जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, पहले से पाँचवे शे'र तक अच्छे अह्सासात और जज़्बात निगारी के साथ शे'र कहे हैं आपने, मुबारकबाद पेश करता हूँ, लेकिन छटे शे'र के मिसरों में क्रमशः "क्या" और "कौन" की कमी खटक रही है, सातवें शे'र का कथ्य स्पष्ट नहीं है और आख़िरी शे'र का शिल्प औचित्यविहीन है। सादर। 

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