For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नहीं आया फिर वो बुला कर मुझे..( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

122 122 122 12

नहीं आया फिर वो बुला कर मुझे
मज़ा ले रहा है सता कर मुझे

अगर मेरे अंदर समाया है तू
कभी आइने में दिखा कर मुझे

हमेशा मिला है तू रोते हुए
मिला कर कभी मुस्कुरा कर मुझे

सदा बस मुझे हुक्म देता है क्यूँ
सलाह मशवरा भी दिया कर मुझे

है डर कुर्सियों के नगर में यही
न वो बैठ जाए उठा कर मुझे

धड़कता हूँ मैं शोर करता नहीं
मैं दिल हूँ तेरा ही सुना कर मुझे

बुरे वक़्त में तेरे काम आऊँगा
कभी देखना आजमा कर मुझे

उठा कंधों पे थे सभी चल रहे 
कहाँ चल दिए अब दबा कर मुझे

*मौलिक एवं अप्रकाशित.

Views: 566

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on September 11, 2020 at 12:50pm

भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 11, 2020 at 8:20am

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by सालिक गणवीर on September 2, 2020 at 9:39pm

आदरणीया डिंपल शर्मा साहिबा
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.

Comment by सालिक गणवीर on September 2, 2020 at 9:38pm

आदरणीय समर कबीर साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.इस्लाह के लिये शुक्रिय: अमल कर दिया जनाब.

Comment by सालिक गणवीर on September 2, 2020 at 9:34pm

आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर'साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.नाचीज़ ममनून है जनाब.

Comment by Dimple Sharma on September 2, 2020 at 3:54pm

आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्ते, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय।

Comment by Samar kabeer on August 31, 2020 at 8:05pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

जनाब अमीर जी ने अच्छे मशविरे दिए हैं, आप संज्ञान भी ले चुके हैं ।

'सदा बस मुझे हुक्म देता है क्यूँ 

सलाह मशवरा भी दिया कर मुझे'

इस शैर का सानी मिसरा बह्र में नहीं है, शैर यूँ कह सकते हैं:-

'हमेशा मुझे हुक्म देता है तू

कभी मशविरा भी दिया कर मुझे'

Comment by सालिक गणवीर on August 31, 2020 at 4:46pm

आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर'साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.आपकी क़ीमती इस्लाह केे लिए ममनून  हूँ जनाब।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 31, 2020 at 3:54pm

आदरणीय सालिक गणवीर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, कई इन्सानी जज़्बात आपकी इस प्यारी सी ग़ज़ल में उभर कर सामने आए हैं, लेकिन कुछ सुधार ज़रूरी हैं अपनी जानिब से कुछ मशविरे पेश करता हूँ अगर सहमत हों तो लागू कर सकते हैं :

"नहीं आ सका फिर बुला कर मुझे

    मज़ा ले रहा है सता कर मुझे"      ऊला में "नहीं आ सका" में मजबूरी झलकती है जबकि सानी में शरारत इसलिए 

नहीं आया फिर वो बुला कर मुझे  ऊला यूँ कर सकते हैं। 

"अभी तक तो बस हुक़्म देते रहे

सलाह मशवरा भी दिया कर मुझे"      इस शे'र में शुतुरगुर्बा दोष है इसलिए 

सदा बस मुझे हुक्म देता है क्यूँ       ऊला यूँ कर सकते हैं। "हुक्म" में नुुक़्ता नहीं लगेेगा। 

"है डर कुर्सियों के नगर में यही

   वो बैठ जाए उठा कर मुझे"    "शह्र" का वज़्न 12 इसलिए ऊला में "शहर" को "नगर" और सानी में "ना" को "न" कर लें 

"धड़कता हूँ मैं शोर करता नहीं

तेरा दिल हूँ तो फिर सुना कर मुझे"   सानी में "तेरा दिल हूँ तो" में शक का आभास होता है इसे यक़ीन में बदलिये :

मैं दिल हूँ तेरा ही सुना कर मुझे     कर सकते हैं। 

"बुरे वक़्त में तेरे काम आउंगा

 तभी देखना आजमा कर मुझे         ऊला में "आउंगा" को "आऊँगा" तथा शिल्प की दृष्टि से सानी में "तभी" को "कभी" 

कभी देखना आज़मा कर मुझे     कर सकते हैं। आज़माकर में नुक़्ता लगा लें। 

"अभी साथ में चल रहे थे सभी

कहाँ चल दिए सब दबा कर मुझे"    इस शे'र का भाव स्पष्ट नहीं है, स्पष्टता और रवानी के लिए यूँ कर सकते हैं :

 उठा कंधों पे थे सभी चल रहे 

कहांँ चल दिए अब दबा कर मुझे  सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
16 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
17 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service