For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मक़ाम ऐसे चाहत में आने लगे हैं (ग़ज़ल - शाहिद फ़िरोज़पुरी)

122 / 122 / 122 / 122

मक़ाम ऐसे चाहत में आने लगे हैं
अब उनके सितम दिल को भाने लगे हैं [1]

मज़े वस्ल में पहले आते थे जो सब
हमें अब वो फ़ुर्क़त में आने लगे हैं [2]

उन्हीं का तो ग़म हमने ग़ज़लों में ढाला
ये एहसाँ वो हम पर जताने लगे हैं [3]

नया जौर का सोचते हैं तरीक़ा
वो उँगली से ज़ुल्फ़ें घुमाने लगे हैं [4]

मुझे लोग दीवाना समझेंगे शायद
मेरे ख़त वो सबको सुनाने लगे हैं [5]

हुए इतने बेज़ार ज़ुल्मत से आख़िर
सब अपने घरों को जलाने लगे हैं [6]

वो जादू है अपनी क़लम में अदू भी
उन्हें ख़त हमीं से लिखाने लगे हैं [7]

वो बे-मिस्ल शाइर समझते हैं ख़ुद को
क़वाफ़ी फ़क़त जो मिलाने लगे हैं [8]

ये अच्छे बुरे शे'र का फ़र्क़ 'शाहिद'
समझने में हमको ज़माने लगे हैं [9]
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
–––––––––––––––––––
कठिन शब्दों के अर्थ:
1. वस्ल = मिलन
2. फ़ुर्क़त = जुदाई
3. जौर = अत्याचार
4. बेज़ार होना = अप्रसन्न होना, तंग आना
5. ज़ुल्मत = अँधेरा
6. अदू = प्रतिद्वंद्वी, दुश्मन
7. बे-मिस्ल = अनुपम, बेजोड़
8. क़वाफ़ी = 'क़ाफ़िया' का बहुवचन

Views: 1030

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 31, 2020 at 6:51pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' भाई, ग़ज़ल तक आने के लिए और मेरा हौसला बढ़ाने के लिए आपका हार्दिक आभार!

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 31, 2020 at 6:49pm

आदरणीया Dimple Sharma साहिबा, आपकी ज़र्रा-नवाज़ी और प्रोत्साहन के लिए बेहद शुक्रगुज़ार हूँ!

Comment by नाथ सोनांचली on July 30, 2020 at 11:25am

आद0 रवि भसीन 'शाहिद' जी सादर अभिवादन। कौन सा शेर को लिखूँ कौन से शैर को छोडूं, यहां तक हरेक शैर मारकऔर लाज़बाब है। बहुत बहुत बधाई आद0। सादर

Comment by Dimple Sharma on July 30, 2020 at 8:35am

आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्ते, वाह बहुत ख़ूब आदरणीय, लाजवाब ग़ज़ल हुई है खासतौर पर अन्तिम शेर तो कमाल हुआ है बधाई स्वीकार करें आदरणीय।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 29, 2020 at 9:33am

आदरणीया Madhu Passi 'महक' साहिबा, ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और हौसला-अफ़ज़ाई के लिए बेहद शुक्रगुज़ार हूँ!

Comment by Madhu Passi 'महक' on July 28, 2020 at 9:38pm
आदरणीय रवि भसीन ' शाहिद' जी नमस्कार । इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए आपको बहुत बहुत बधाई !
मुझे लोग दीवाना समझेंगे शायद
मेरे ख़त वो सबको सुनाने लगे हैं
Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 28, 2020 at 7:33pm

जनाब TEJ VEER SINGH जी, हौसला-अफ़ज़ाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिय: हुज़ूर!

Comment by TEJ VEER SINGH on July 28, 2020 at 6:51pm

हार्दिक बधाई आदरणीय रवि भसीन "शाहिद" जी।बेहतरीन गज़ल।

मज़े वस्ल में पहले आते थे जो सब
हमें अब वो फ़ुर्क़त में आने लगे हैं [2]

मुझे लोग दीवाना समझेंगे शायद
मेरे ख़त वो सबको सुनाने लगे हैं [5]

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 27, 2020 at 5:03pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' भाई, आपकी नवाज़िश और हौसला-अफ़ज़ाई के लिए बेहद शुक्रगुज़ार हूँ!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 27, 2020 at 4:17pm

आ. भाई रवि भसीन जी, सादर अभिवादन । एक और अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service