For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (वही मंज़र है और मैं) - शाहिद फ़िरोज़पुरी

बहरे मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़

221  / 2121  / 1221 /  212

बद-हालियों का फिर वही मंज़र है और मैं

इक आज़माइशों का समंदर है और मैं [1]

अरमान दिल के दिल में घुटे जा रहे हैं सब

महरूमियों का एक बवंडर है और मैं [2]

बैठा हूँ इन्तेज़ार में ढय जाये ख़ुद-ब-ख़ुद

दिल में तुम्हारी याद का खंडर है और मैं [3]

आँखों में धुँधले धुँधले से फूलों के ख़्वाब हैं

काँटों भरा हयात का बिस्तर है और मैं [4]

मुझ नातवाँ से बोझ ये उठ पाएगा कहाँ

कार-ए-जहाँ पहाड़ बराबर है और मैं [5]

मुझको सज़ा मिलेगी सदाक़त की बार बार

हर आदमी के हाथ में पत्थर है और मैं [6]

मक़तल में खेंच लाया है फिर से मुझे ये दिल

क़ातिल भी है वही वही ख़ंजर है और मैं [7]

सुनता हूँ दश्त में भी मैं शहरों का शोर-ओ-ग़ुल

शोरिश ये मेरे ज़ह्न के अंदर है और मैं [8]

कब से सफ़र में हूँ दिल-ए-बे-मुद्दआ लिए

'शाहिद' ये मेरे पाँव का चक्कर है और मैं [9]

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

--------------------------------------------------

कठिन शब्दों के अर्थ:

  1. बद-हाली = बुरी हालत
  2. मंज़र = दृश्य
  3. आज़माइश = परीक्षा
  4. महरूमी = वंचित रहना, प्राप्त न होना
  5. हयात = ज़िन्दगी
  6. नातवाँ = कमज़ोर
  7. कार-ए-जहाँ = दुनिया का काम
  8. सदाक़त = सच्चाई
  9. मक़तल = क़त्ल करने की जगह
  10. दश्त = रेगिस्तान, जंगल, सूखी और बंजर भूमि
  11. शोरिश = खलबली, कोलाहल
  12. दिल-ए-बे-मुद्दआ = वो दिल जिसकी कोई इच्छा न हो

Views: 1186

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on September 12, 2020 at 8:41pm

आदरणीय भसीन जी वाह बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हूं है आपकी । हर शेर लाज़वाब । मुबारक़बाद कबूल कीजियेगा ।

सादर ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 19, 2020 at 12:59pm

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, आपकी ज़र्रा-नवाज़ी और मुबारकबाद के लिए बेहद मशकूर-ओ-ममनून हूँ जनाब!

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 19, 2020 at 12:57pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहिब, आप की नवाज़िश और हैसला-अफ़ज़ाई के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ! ग़ज़ल तक आने के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by सालिक गणवीर on June 18, 2020 at 1:33pm

आदरणीय रवि भसीन साहिब

बेहतरीन अश'आर से लबालब भरी इस उम्दा ग़ज़ल के लिए मेरी ओर दिली मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें. सादर

Comment by नाथ सोनांचली on June 18, 2020 at 12:43pm

आद0 रवि भसीन शाहिद जी सादर अभिवादन। आप लोग जीवन के हर फलसफे को जिस तरह अशआर के रूप में ढाल कर लाते हैं कि मन मुग्ध हो जाता है। बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल पर। हर शैर अपने आप में मुकम्मल

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 17, 2020 at 4:07pm

आदरणीय Rupam kumar 'मीत' भाई, आपकी मुबारकबाद और हौसला-अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 17, 2020 at 4:06pm

आदरणीय आशीष यादव साहिब, आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ! सादर

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 17, 2020 at 4:02pm

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब, आदाब! आपकी दाद और मुबारकबाद के लिए तह-ए-दिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय!

Comment by आशीष यादव on June 17, 2020 at 8:59am

वाह क्या कमाल की गजल कही है आपने। बधाई स्वीकार कीजिए।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 16, 2020 at 7:28pm

मुहतरम रवि भसीन 'शाहिद' साहिब, आदाब।

बहुत उम्द: ग़ज़ल हुई है, शेअ'र दर शेअ'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ । सादर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service