For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ( कितनी सियाह रातों में.....)

( 2212 122 2212 122)

कितनी सियाह रातों में हम बहा चुके हैं
ये अश्क फिर भी देखो आंँखों में आ चुके हैं

गर आके देख लो तो गड्ढे भी न मिलेंगे
हाँ,लोग काग़ज़ों पर नहरें बना चुके हैं

अब खिलखिला रहे हैं सब लोग महफ़िलों में
मतलब है साफ सारे मातम मना चुके हैं

वो ख़्वाब सुब्ह का था इस बार झूठ निकला
ता'बीर के लिए हम नींदें उड़ा चुके हैं

अब पाप का यहाँ पर नाम-ओ-निशांँ नहीं है
सब लोग शह्र के अब गंगा नहा चुके हैं

मजबूरी है, ग़रज़ है,मायूस हैं तभी तो
बहरों को हाल-ए-दिल हम अपना सुना चुके हैं

हर साल गर्मियों में वो खोलेंंगे पियाऊ
जो,प्यास सर्दियों में अपनी बुझा चुके हैं

* मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 692

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on June 11, 2020 at 8:57pm

आदरणीया डिंपल शर्मा जी
आदाब
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हार्दिक आभार. 

Comment by सालिक गणवीर on June 11, 2020 at 8:55pm

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब

आदाब

ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय की गहराईयों से आभार. उम्मीद करता हूँ कि भविष्य में भी आपका स्नेह और मार्गदर्शन मिलता रहेगा. सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 11, 2020 at 11:42am

जनाब सालिक गणवीर जी, आदाब।

अच्छी ग़ज़ल कही है आपने, बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Dimple Sharma on June 11, 2020 at 11:20am

आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्ते इस खुबसूरत ग़ज़ल पर ढ़ेर सारी बधाइयां आपको , आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' जी नमस्ते,आपने ग़ज़ल पर जो जानकारियां दि हैं वो बहुत कुछ मददगार होगी मेरे लिए भी , पढ़कर अच्छा लगा , अपनी ग़ज़लों पर भी आपकी उपस्थिति और आपके मार्गदर्शन के लिए गुज़ारिश करुंगी, कृप्या वक्त निकाल मेरी ग़ज़लों पर भी अपनी इनायत बरपें , आभार।

Comment by सालिक गणवीर on June 11, 2020 at 7:22am
आदरणीय रवि भसीन ' शाहिद' साहिब
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिए ह्दय से आभार. इतनी महत्वपूर्ण जानकारियाँँ एवं मार्गदर्शन के लिए विशेष आभार. टंकन त्रुटियाँँ दुरुस्त कर पुनः प्रेषित करता हूँ. ंं और ँँ के प्रयोग पर मुझे हर बार संदेह होता था ,परंतु अब नहीं होगा. पुनः धन्यवाद. आदरणीय आशा करता हूँ भविष्य में भी आपका स्नेह और मार्गदर्शन मिलता रहेगा. सादर
Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 11, 2020 at 12:57am

जो बहुत से लोगों को पता *नहीं* है,

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 11, 2020 at 12:44am

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, आप को इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर तह-ए-दिल से बधाई। उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब ने हरी झण्डी दिखला दी है, इसलिए मेरा कुछ भी कहना बद-तमीज़ी है। लेकिन फिर भी आपको बताना चाहता हूँ:

आदरणीय, कुछ टंकण त्रुटियाँ इंगित कर रहा हूँ:


1 फिर, आँखों

2 आदरणीय, उर्दू शाइरी में 'ना' को 2 के वज़्न पर कभी नहीं लिया जाता, इसे 1 के वज़्न पे लेने की आदत डालिये। 'ना' को 'न' लिखना इसलिए ज़ियादा मुनासिब है ताकि लिखते समय याद रहता है कि इसे 1 वज़्न पे लेना है। जैसे पिछली गुफ़्तुगू में आपने ज़िक्र किया था, मैं 'सही' को 'सहीह' इसलिए लिखता हूँ ताकि उसका वज़्न याद रहे।

3 साफ़
'सब' और 'अब' को एक दूसरे के स्थान पे कह कर देखिये।

4 आदरणीय, 'सुबह' को अगर 'सुब्ह' लिखेंगे तो आपको वज़्न याद रहेगा, आपने दुरुस्त वज़्न इस्तेमाल किया है।

5. आपको बिंदु (अनुस्वार) और चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक ) के बारे में एक जानकारी देना चाहता हूँ:
बिंदु मतलब आधा 'न' यानी 1 का वज़्न: खंडर (खन 2 डर 2)
चन्द्रबिन्दु मतलब नाक में से 'न' की आवाज़, यानी 0 वज़्न: खँडर (खँ 1 डर 2)
इस हिसाब से आख़िर में जो 'आँ' की आवाज़ है वो हमेशा चन्द्रबिन्दु से ही लिखी जाती है: निशाँ
और लिखने का सहीह तरीक़ा: नाम-ओ-निशाँ

7. आदरणीय, मेरे हिसाब से सही लफ़्ज़ 'पियाऊ' यानी 122 है, आप आसानी से अपने शे'र में तरमीम कर लेंगे।

/अब पाप का यहाँ पर नामो-निशां नहीं है
सब लोग शहर के अब गंगा नहा चुके हैं/
इज़ाफ़त वाले लफ़्ज़ों को लिखने का सहीह तरीक़ा है: नाम-ओ-निशाँ
इस शे'र पर मेरी विशेष दाद स्वीकार करें आदरणीय, ख़ास तौर पे 'शह्र' के सहीह वज़्न पे, जो बहुत से लोगों को पता है, और जिन्हें बताया जाता है, वो स्वीकार नहीं करना चाहते।

Comment by सालिक गणवीर on June 10, 2020 at 11:01pm

आदरणीय समर कबीर साहब
आदाब
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय की गहराईयों से आभार. उम्मीद करता हूँ कि भविष्य में भी आपका स्नेह और मार्गदर्शन मिलता रहेगा. सादर

Comment by Samar kabeer on June 10, 2020 at 3:25pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"स्वागतम"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"जी बहुत शुक्रिया आदरणीय चेतन प्रकाश जी "
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.लक्ष्मण सिंह मुसाफिर साहब,  अच्छी ग़ज़ल हुई, और बेहतर निखार सकते आप । लेकिन  आ.श्री…"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.मिथिलेश वामनकर साहब,  अतिशय आभार आपका, प्रोत्साहन हेतु !"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"देर आयद दुरुस्त आयद,  आ.नीलेश नूर साहब,  मुशायर की रौनक  लौट आयी। बहुत अच्छी ग़ज़ल…"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
" ,आ, नीलेशजी कुल मिलाकर बहुत बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई,  जनाब!"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।  गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। भाई तिलकराज जी द्वार…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए आभार।…"
9 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तितलियों पर अपने खूब पकड़ा है। इस पर मेरा ध्यान नहीं गया। "
9 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी नमस्कार बहुत- बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त निकाला विशेष बधाई के लिए भी…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service