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अतुकांत कविता : प्रगतिशील (गणेश जी बागी)

अतुकांत कविता : प्रगतिशील

अकस्मात हम जा पहुँचे
एक लेखिका की कविताओं पर
जिसमे प्रमुखता से उल्लेखित थे
मर्द-औरत के गुप्त अंगों के नाम

लगभग सभी कविताओं में...

पूरी तरह से किया गया था निर्वहन
उस परंपरा को
जहाँ दी जाती हैं गालियाँ
समूची मर्द जाति को

एक ही कटघरे में खड़ा कर
प्रस्तुत किया जाता है विशिष्ट उदाहरण
चंद मानसिक विक्षिप्तों का

हम नहीं पढ़ सके वो कविताएँ
हमारे संकुचित संस्कार
आड़े आ गये थे, क्योंकि ...
हमारी शिक्षा नहीं हुई है
देश के बहुचर्चित विश्वविद्यालय में

आज भी हमारी सोच रह गयी है
पिछड़ी
संकुचित
नहीं बन सके हम
कथित प्रगतिशील !

हम पढ़ने लगे...
उन कविताओं पर आयी
कुछ विदुषियों व ढेरों विद्वानों की
वाह-वाह भरी टिप्पणियाँ
और उन टिप्पणियों पर
लेखिका द्वारा उत्साहपूर्वक
की गयी प्रतिक्रियाएँ

प्रतीत हो रहा था..
लेखिका की कलम से निकले
स्त्री-पुरुष की देह को इंगित
अश्लील शब्द-चित्रों से
मिल रही हो जैसे
मानसिक खूूराक

उन पाठक-पाठिकाओं को
जो लेखिका के संग-संग
प्राप्त हो रहे हों
चरमोत्कर्ष को
प्रगतिशीलता और नारी विमर्श के आवरण में ।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by MUKESH SRIVASTAVA on February 12, 2020 at 5:07pm

achee rachnaa - badhaee

Comment by नाथ सोनांचली on February 6, 2020 at 5:15am

आद0 गणेश जी बागी जी सादर अभिवादन। इस अतुकांत को जितनी बार पढ़ता हूँ, भूख बढ़ती जाती है। इस जीवंत रचना के लिए आपको कोटिश बधाइयां। सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 3, 2020 at 6:36pm

इस कविता के माध्यम से उन तथाकथित रचनाकारों के गाल पर जबरदस्त तमाचा है | एक बात और बताऊँ कुछ फर्जी नाम से अर्थात फेक आई डी से पुरुषवर्ग भी संलिप्त हैं इस घिनौने लेखन में |मगर मेरा यही कहना है चाहे कवि हो या कवयित्री ,,ऐसा लेखन एक गंदी मानसिकता विकृत मानसिकता का परिणाम है साहित्य में दाग हैं धब्बा हैं 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2020 at 5:18am

आ. भाई गणेश जी , सादर अभिवादन । अच्छी कविता हुई है । हार्दिक बधाई ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 1, 2020 at 9:36am

आदरणीय समर साहब, आपका आशीर्वाद इस अभिव्यक्ति को मिला, बहुत बहुत आभार । टंकण त्रुटि को बताने हेतु हृदय से अभिभूत हूँ, अभी एडिट करता हूँ ।

Comment by Samar kabeer on January 31, 2020 at 3:23pm

जनाब गणेश जी 'बाग़ी' साहिब आदाब,तरक़्क़ी पसंद तहरीक के नुमाइंदों पर बहुत उम्दा तंज़ करती एक अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

'मानसिक खुराक'--"मानसिक ख़ूराक"

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