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बेचारा सर्वहारा (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (37)

विजय उत्सव अपने चरम पर था। शहर के कुछ नामी नेता और मिल मज़दूरों में से दो अगुआ मज़दूरों के साथ बड़े कर्मचारी मिल मालिकों को बधाई दे रहे थे मज़दूरों के वापस काम पर लौटने पर।

"आपने पहले ही इशारा कर दिया होता, तो हम तो ये हड़ताल पांच-छह दिन में ही बंद करवा देते ! चारों अगुआ मज़दूरों को जेल भिजवाने में इतनी देरी हम होने ही नहीं देते ! " -एक नेता ने कहा।

"वो रूपकिशोर है न, वही उनकी ताक़त था, उसकी वो हालत करवा दी कि बीस दिनों से अस्पताल में भर्ती है"- एक दबंग ने मिल मालिक की तरफ देख कर कहा।

"लेकिन साहब, सबसे ज़्यादा असर तो अफवाहें फैलाने के बाद भूख हड़ताल शुरू होने पर पड़ा। हमने आपके इशारे पर वो पैंतरा बदला कि भूखे पेट हड़ताल करने वालों के घर खाने के लाले पड़ गये। "- दलाल अगुआ मज़दूरों में से एक बोला।

सिगरेट का कश लेते हुए मिल मालिक ने टेबल पर घूसा मारते हुए कहा- "सही कहा है किसी ने कि जिस देश में आम मेहनतकश आबादी के बीच राजनीतिक चेतना की कमी हो, उस देश में यदि एक झूठ को भी लोगों के कानों में दिन-रात मंत्र की तरह फूंका जाये, तो लोग उसे सच मानने लगते हैं ! देखा, भूख हड़ताल भी ख़त्म हो गई और काम पर भी लौट आये वे सब सर्वहारा !"

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 5:03am
इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देने हेतु सभी पाठकगण को तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 16, 2015 at 5:16pm
मेरी रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी करने व मुझे प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, आदरणीय सुशील सरना जी व आदरणीय तेज वीर सिंह जी। आदरणीय सौरभ जी मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु हार्दिक आभार।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 6, 2015 at 12:58am

सच्चाई को शब्दांकित करने का प्रयास हुआ है. इसी तरह प्रयासरत रहें, आदरणीय.  

इस प्रस्तुति में आवश्यक कसावट हो जाय तो यह और निखर सकेगी. आप कुछ हफ़्तों बाद इस प्रस्तुति को पढियेगा, मेरा कहा स्प्ष्ट होगा.  

शुभेच्छाएँ

Comment by Sushil Sarna on November 25, 2015 at 5:24pm

वाह आदरणीय उस्मानी साहिब सत्य को उजागर करती इस बेहद उम्दा लघु कथा की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई। 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 25, 2015 at 11:50am

हार्दिक बधाई शेख उस्मानी जी!बेहतरीन लघुकथा!

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