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मुक्‍तक- 1

भला होता है वो कैसा जिसे सब प्‍यार कहते है
नही यह भी पता मुझको किसे सब यार कहते है
न जाना मैं कभी इनको न पहचाना कभी इनको
यही कारण मुझे सब आदमी बेकार कहते है

मुक्‍तक -2
नही होता अगर ये दिल तो हम भी शान से जीते
लड़ा कर जाम से हम जाम तुम्‍हारे साथ में पीते
मगर कमबख्त दिल मेरा हमेशा नाम ले उसका
भुलाने ही नही देता पलों को साथ जो बीते

मुक्‍तक -3
करू क्या काम दिन भर मै मुझे पत्नी बताती है
झुका कर के नज़र चलना मुझे हरदम सिखाती है
नज़र मेरी चली जाये अगर अपनी पड़ोसन पे
चला बेलन वही दिन में मुझे तारे दिखाती है

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

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Comment

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Comment by narendrasinh chauhan on May 28, 2015 at 10:18am

बहोत खूब सुन्दर मुस्तक, सुन्दर गजल पर बधाई

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 28, 2015 at 8:05am

वाह..सुन्दर मुक्तक हुए है!हार्दिक बधाई आ० अखंड जी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 27, 2015 at 11:00pm

आदरणीय अखंड जी बहुत बेहतरीन मुक्तक है आपको बधाई 

निवेदन- 

न जाना मैं कभी इनको न पहचाना कभी इनको ... इस मैं को है किया जा सकता है 

लड़ा कर जाम से हम जाम तुम्‍हारे साथ में पीते.... तुम्हारे के कारण मिसरा बेबह्र हो रहा है इसे तेरे/उनके किया जा सकता है 

हा हा हा ,,, ये बहुत बढ़िया हुआ है-

करू क्या काम दिन भर मै मुझे पत्नी बताती है
झुका कर के नज़र चलना मुझे हरदम सिखाती है
नज़र मेरी चली जाये अगर अपनी पड़ोसन पे
चला बेलन वही दिन में मुझे तारे दिखाती है

Comment by Samar kabeer on May 27, 2015 at 10:54pm
जनाब अखंड जी,आदाब,पहला और तीसरा दोनों मुक्तक पसंद आए ,दाद क़ुबूल फ़रमाऐं
Comment by shikha kaushik on May 27, 2015 at 9:14pm

तीनों ही मुक्तक बेहतरीन हैं पर तीसरे की बात निराली है .बधाई  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 27, 2015 at 7:47pm

बहुत बढ़िया वाह

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