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इस घर से .... (200 वीं प्रस्तुति )

इस घर से .... (200 वीं प्रस्तुति )

कितना
इठलाती थी
शोर मचाती थी
मोहल्ले की
नींद उड़ाती थी

आज
उदास है
स्पर्श को
बेताब है
आहटें

शून्य हैं


अपनी शून्यता के साथ
एक विधवा से
अहसासों को समेटे
झूल रही है
दरवाज़े पर
अकेली
सांकल

शायद
इस घर से
इस घर को
घर बनाने वाला
चला गया है
इक
बज़ुर्ग


सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 15, 2016 at 9:30pm
वाह आदरणीय बहुत ही भावपूर्ण रचना...नमन है लेखनी को..

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Comment by rajesh kumari on November 15, 2016 at 9:19pm

एक बुजुर्ग का साया सिर से उठ जाने के अहसास को बहुत खूबसूरत बिम्ब भाव से सृजित किया है बेहतरीन प्रस्तुति दिल से बधाईयाँ आद० सुशील सरना जी 

Comment by Sushil Sarna on November 15, 2016 at 7:16pm

आदरणीय समर कबीर साहिब सर्वप्रथम आपकी आत्मीय बधाई का हार्दिक आभार। प्रस्तुति के मर्म को आपने जो इज्जत बख्शी है बन्दा उसके लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता है। आपकी हौसला अफ़ज़ाई की थपकी ने मेरे सृजन को इस पायदान तक पहुंचाया है। उम्मीद करता हूँ आपका ये स्नेह सदा बना रहेगा। हार्दिक हार्दिक आभार सर। 

Comment by Samar kabeer on November 15, 2016 at 5:17pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,सबसे पहले तो 200वीं प्रस्तुति के लिये बधाई आपको ।
कविता आपकी फ़िक्र को पूरी तरह उजागर कर रही है,और दिल को छू रही है,हमेशा की तरह ये प्रस्तुति भी कमाल की हुई है,ढेरों बधाई स्वीकार करें ।

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