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कौन सा साहित्य रचते हो ( 2 )--डॉo विजय शंकर

भरा पड़ा है साहित्य ,
ऐसा साहित्य जो,
कभी जुड़ नहीं पाया लोगों से ,
आम आदमी से , सीमित रह गया एक
अत्यंत सूक्ष्म तथाकथित उच्च सभ्रांत वर्ग में |
वेद , गीता , पुराण , भरा-बिखरा पड़ा है ज्ञान ही ज्ञान ,
मिल जाएगा , ढेरों मिल जाएगा , इनसे , उनसे ,
ऋचाओं से , श्रुतियों से , स्मृतियों से , संहिताओं से ,
बस , जुड़ नहीं पाया कभी दाल रोटी की समस्याओं से |
वह सर्वस्व है , वह यहां है , वहां है ,
अन्न अन्न के दाने दाने में है , सर्वत्र है वह ,
वह सर्वस्व है, सर्वत्र है , शास्त्रों के विधान में है,
नहीं है , तो स्वयं राजा के ज्ञान में
नहीं है , तो जन जन के संज्ञान में ,
क्या लाभ उस ज्ञान से
जो सिर्फ दिखाने , झाड़ने के लिए हो,
ओढ़ने - बिछाने के लिए न हो,
न आम जन तक पहुँच पाये ,
न सम्पूर्ण जन जीवन में उतर पाये ,
जिसके गूढ़ अर्थ हम आज भी न ढूंढ पाये ,
व्याख्या करते गए , जीवन में न उतार पाये ||

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

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Comment by Samar kabeer on February 23, 2015 at 11:14pm
आली जनाब डा.विजय शंकर जी,आदाब,सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत बधाई |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 23, 2015 at 9:22pm

जो सिर्फ दिखाने , झाड़ने के लिए हो,
ओढ़ने - बिछाने के लिए न हो,
न आम जन तक पहुँच पाये ,
न सम्पूर्ण जन जीवन में उतर पाये ,
जिसके गूढ़ अर्थ हम आज भी न ढूंढ पाये ,
व्याख्या करते गए , जीवन में न उतार पाये ||   बहुत सार्थक बातें कही आपने , आदरणीय विजय भाई , आपको बहुत बधाइयाँ ॥

Comment by maharshi tripathi on February 23, 2015 at 5:14pm

सही कहा आपने ,,,ज्ञान वही जिससे दूसरों को भी लाभ हो ,,,,आपकी रचना पर आपको बधाई आ.विजय शंकर जी |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 23, 2015 at 2:51pm

आ 0 विजय  सर !

क्या खूब कहा है -

क्या लाभ उस ज्ञान से
जो सिर्फ दिखाने , झाड़ने के लिए हो,
ओढ़ने - बिछाने के लिए न हो,
न आम जन तक पहुँच पाये ,
न सम्पूर्ण जन जीवन में उतर पाये ,
जिसके गूढ़ अर्थ हम आज भी न ढूंढ पाये ,
व्याख्या करते गए , जीवन में न उतार पाये 

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