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मोहतरम जनाब योगराज प्रभाकर साहिब की फ़रमाइश पर कही गई तरही ग़ज़ल नम्बर-2

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन

यहाँ हर सू जिहालत है? नहीं तो
पढ़े लिक्खों की क़ीमत है? नहीं तो

सुख़न पर कोई पाबन्दी नहीं अब
ज़बाँ खोलूँ, इजाज़त है? नहीं तो

भरे दरबार में सच बोलना है
तिरे दिल में ये हिम्मत है? नहीं तो

बदल सकता नहीं फ़रमान तेरा
ये क्या क़ुरआँ की आयत है? नहीं तो

अदक़ अल्फ़ाज़ रख देना ग़ज़ल में
इसी का नाम जिद्दत है? नहीं तो

नहीं दौलत ये मिहनत से कमाई
तो क्या माल-ए-ग़नीमत है? नहीं तो

बुलाया है जिन्हें दावत प उन में
शऊर-ए-आदमीयत है? नहीं तो

मुझे छोड़ो,किसी के वास्ते भी
तुम्हारे दिल में इज़्ज़त है? नहीं तो

बना सकती है जन्नत जो वतन को
यही क्या वो हुकूमत है? नहीं तो

ग़ज़ल यूँ पेश करना भाग जाना
ये ओबीओ की ख़िदमत है?नहीं तो

"समर" पेशा तेरा तक़रीर करना
तुझे शौक़-ए-शहादत है? नहीं तो

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 5, 2017 at 5:21pm

आदरणीय समर सर बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुयी है आपकी ग़ज़लों से नित नया सीखने को मिलता है इस रचना के ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 5, 2017 at 3:44pm

सबसे पहले तो इस हकीर की गुजारिश पर ज़हमते सुखन कुबूल फरमाने के लिए तह-ए-दिल से आपका शुकरगुज़ार हूँ मोहतरम आली जनाब समर कबीर साहिबI आपकी ज़रखेज़ क़लम की तारीफ में अलफ़ाज़ नही ढूँढ पा रहा हूँ, कितनी आसानी और सादगी से ऐसे आला पाये के अशआर कह जाना, बस आप ही के बस की बात हैI बहुत ही मुरस्सा ग़ज़ल हुई है, हर शेअर एक दूसरे से बढ़ चढ़कर हुआ हैI शेअर दर शेअर दाद और मुबारकबाद कबूल फरमाएँI         

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 5, 2017 at 1:02pm
आहा क्या बात है जनाब समर साहब । बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने । बधाई कुबूल करें सर ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 11:07am

वाह ..अब बेहतर हो गया मिसरा 
सादर 

Comment by Samar kabeer on May 5, 2017 at 10:19am
जनाब निलेश'नूर'साहिब आदाब,बहुत बहुत शुक्रिया,'को'मुझे भी खटक रहा है,रात को जल्दबाज़ी में ग़लती हो गई,इस मिसरे को यूँ पढें:-
'ग़ज़ल यूँ पेश करना भाग जाना'
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 8:47am

वाह वाह...आ. समर सर ,
फिर से बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है ....
ग़ज़ल को पेश करके भाग जाना... यहाँ को  खल रहा है ...
.
सादर 

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