For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शादी की दावत-2

द्वार पर चुनमुनिया थी |

“भईया आप लोग बारात नहीं चलेंगे |उहाँ सब लोग तैयार हो गए हैं |बैंड-बाजा वाले भी आ गए हैं |सभी औरत लोग लावा लेने जा रही हैं |”

कितना बोलती है तू !क्या तू भी बारात चेलेगी ?मैंने कहा

“और क्या ?उहाँ चलकर फुलकी ,रसगुल्ला ,टिकिया खाने वाला भी तो चाहिए ना |”

“अच्छा तू चल ,हम लोग नया कपड़ा पहनकर आते हैं |”महेश भईया बोले

उसके मुड़ते ही महेश भईया ने कहा - “चलों जवानों ,कूच करते हैं |”

“मैं विद्रोह पर हूँ !शादी में बुलाकर भूखा रखने वाले मौसा के ख़िलाफ़ विद्रोह - - “मैगजीन को मोड़ कर बनाए गए  भोपू से संतोष घोषणा करता है |

“मतलब - - तुम बारात में नहीं जा रहे !”

“मतलब कि मैं बारात के लिए लाए नए कपड़े नहीं पहनूँगा |”

“देख ले मलिक्ष ,बदबू मारेगा तो कोई साली पास नहीं आएगी |हम भी बोल देंगे कि प्रजा(नौकर )है |” सतीश ने ठहाका मारा |

पर उसने अपनी जिद्द नहीं छोड़ी और हम सब तैयार होकर बस में जा बैठे |

लड़की के द्वार पर पहुँचने से पहले बैंड पर नाच शुरु हो गया |परिचितों ने हमें भी अंदर खीँच लिया |पर संतोष बार-बार बुलाने पर भी नहीं गया |बल्कि बिगड़ कर कुछ और दूर खड़ा हो गया |

द्वार पूजा के स्वागत पर बरातियों के लिए छेना और लड्डू का प्रबंध था |

जब संतोष को एक प्लेट पकड़ाई गई तो वो बोला –“भईया नागपुर से तुम लोगों की मिठाई खाने आ रहे हैं और तुम हो कि एक में ही निपटा रहे हो |”

उस लड़के ने झल्लाते हुए चार प्लेट संतोष के सामने रख दी और संतोष बेहयाई से स्वाद ले लेकर छेना-लड्डू  खाता रहा |इसके बाद वो सॉफ्ट-ड्रिंक पर टूट पड़ा |

जब खाने के टैंट में पहुँचे तो संतोष ने प्लेट को पनीर ,हलवे और ढेर सारी पूड़ियों से भर लिया और मज़े से खाने लगा |एक नहीं,दो नहीं,तीन बार उसने प्लेट ठसाठस भरी और पूरी साफ़ कर गया |

“क्या संतोष इतना ही खाता है !”महेश भईया ने हैरानी से पूछा |

“आज ही - - - - -“ सतीश ने हैरानी से जवाब दिया |

“दिन भर भूखा मार डाले, साSले,अब सबक सिखाएँगे |”वो खाते हुए बड़बड़ा रहा था |

“संतोष तुम ठीक तो हो ?”महेश ने पूछा

“मैंने भांग - - - -सीS ई “बताना मत किसी को

जब तक खाना चलता रहा वो कुछ ना कुछ अंदर ठुस्ता रहा |बाद में वो बारतियों के लिए लगाए गए बिछावन पर जाकर सो गया |

सुबह विदाई से पहले भी बरातियों के लिए नाश्ते की व्यवस्था थी |संतोष ने पहले गटागट चार-पाँच कप चाय गले के नीचे उतारी और फिर हम सभी की प्लेटों का छेना भी सुड़क लिया |

“यार मीठा बहुत अच्छा लग रहा है |”वो मुस्कुराते हुए बोला |

उसके इस व्यवहार पर हमे हँसी भी आ रही थी और शर्मिंदगी भी महसूस हो रही थी |पर उस समय हमें केवल स्थिति को नियंत्रित रखना था |

घर पहुँच कर हम सभी बिस्तर पर निढाल हो गए |12 बजे के आसपास चुनमुनिया चिप्स और चाय दे गई |

अपनी चाय गटक कर संतोष बोला-“थोड़ी चाय और दो - -  -“

हमनें फटाफट चाय गले के नीचे उतार ली |लगभग एक घंटे बाद

“पेट बहुत मरोड़े मार रहा है |कोई निबटने चलेगा ?”संतोष बोला

“चलों ,तलैया वाले बाग में सभी निबट आते हैं “महेश बोला |

ताल रोहू,सिंघी,मंगूर और कई देशी मछलियों और जल जीवों से भर था |शरद ऋतू होने के कारण साइबेरियन पक्षियों का वहाँ बड़ी मात्रा में प्रवास होता था तथा प्रतिबंध के बावजूद लोग इन पक्षियों का शिकार करते थे |

“इनका माँस बहुत लज़ीज़ होता है |” चमकती आँखों से उनको देखते हुए महेश बोला |

फारिग होकर हम सब घर पहुँचे तो वहाँ बड़े बाऊजी पहले से मौजूद थे |

 “सुनों महेश,आज शाम को तुम सभी लोगों के लिए दिलीप के यहाँ देशी मुर्गा बनवा रहे हैं |शाम को तुम लोग वहीं पहुँच जाना |”

बाऊजी के जाने के बाद सतीश बोला –“देर से आए दुरुस्त आए |लगता हैं संतोष का तमाशा काम कर गया |”

“मेरे पेट में तो मरोड़ हो रहा है |क्या कोई फिर बाग़ चलेगा ?” संतोष ने पूछा

“मैं चल रहा हूँ |”हाथ में एक गुलेल लिए महेश बोला |

जब वे लौटे तो मेहश के हाथ में एक साइबेरियन चिड़िया थी |

“आज इस चिड़िया में तरी लगाकर खिलाएँगे |मुर्गा-उरगा सब फेल है इसके आगे - - -“

“मैं नहीं खाने वाला ये सब |मेरे पेट में तो अभी भी दर्द है |वैसे भी शाम को मुर्गा खाना है |तब तक पेट भी सोन्हा जाएगा  - -“संतोष बोला

“मैं भी ये जंगली चीज़े नहीं खा सकता |”सतीश नाक सिकोड़ते हुए बोला

चिड़िया पकते-पकते चार बज गए |सच में चिड़िया का गोश्त बेहद लज़ीज़ और स्वादिष्ट था |पर सतीश और संतोष को नहीं खाना था सो वो नहीं खाए |उनके दिमाग में शायद देशी मुर्गे की बोटियाँ थीं |

शाम को जब चुनमुनिया चाय लेकर आई तो उसने खाने के बारे में पूछा तो सतीश ने उसे दावत की बात कह दी |

आठ बज गए और हमें भूख महसूस होने लगी |पर संतोष और सतीश भूख से बेहाल थे |हम सभी लोग बातों से मन बहलाने लगे और रह-रहकर घड़ी देखते |नौ बजते ही महेश हम लोगों को दिलीप के घर की तरफ ले चला |पर जैसे ही हम दिलीप के घर पहुँचे |वहाँ का माहौल देखकर हमे साँप सूंघ गया |घर में सन्नाटा पसरा था |डिबरी बुझा दी गई थी |लोग सोने चले गए थे |

“भईया आप लोग !ईधर ?”टार्च की रोशनी में हमे पहचानते हुए दिलीप बोला

“कुछ नहीं बस थोड़ा ठहलने निकले थे |”स्थिति की नजाकत को सम्भालते हुए महेश बोला

“खाना-पीना हो गया न ! बाउजी सुबह कहे थे कि तुम्हारे यहाँ सभी लड़को के मुर्गा का कार्यक्रम रहेगा |औरत लोग तो आप लोगों के लिए रोटी-भात भी बना ली थीं |अभी थोड़ी देर पहले ही हम घास-पात यानि की दाल-साग खाएँ  हैं जो औरत लोग अपने लिए बनाई थीं |”हमारी तरफ गौर से देखता हुआ वो बोला

“हमारी थोड़ी तबीयत ठीक नहीं थी |कल शादी में खाना-पीना थोड़ा गड़बड़ कर गया था |इसलिए हम ही लोग बाबूजी से कह दिए की सादा खाएँगे |”महेश ने कहा|

संतोष की सूरत उस समय देखने लायक थी पर ना जाने क्यों वो चुप्प रहा |

 

हम सभी लोग घर पर पहुँचे तो गाँव का एक लड़का वहाँ खड़ा मिला और बोला –“भईया,बाग वाले दादा ये मुर्गा पठाए हैं | “

हमनें देखा तो झिल्ली में कच्चा मुर्गा था |

“ फैंक साला को - - - -“कहते हुए संतोष ने झिल्ली छीनी और दूर उठाकर फैंक दी |गाँव के कुत्ते लड़ते-झगड़ते हुए गोश्त पर टूट पड़े |

थोड़ी देर मातम का माहौल बना रहा |कुछ देर बाद महेश भईया मोबाईल की टार्च जलाए और रसोईघर में डिब्बे तलाशने लगे |वो हाथ में एक डिब्बा लिए मुस्कुराते हुए लौटे |

“देखो ,चीनी मिल गई |”

पूरी चीनी को घोलकर भी इतना ही शरबत बना कि सब एक-एक गिलास पी सकें |पर महेश भईया ने अपना हिस्सा भी संतोष को दे दिया |

सुबह पौं फटने से पहले ही हम सभी घर से निकल लिए और सात बजे स्टेशन के होटल पर आकर चाय-नाश्ता किया और अपनी-अपनी ट्रेनों की प्रतीक्षा करने लगे |संतोष की ट्रेन सबसे पहले आई |

ट्रेन में बैठने से पहले वो भावुक होकर बोला –“संतोष भईया ये बारात और शरबत कभी नहीं भूलेंगे |”

 

संतोष भईया ने कहा –“ लौट के बुद्धू -  - - “

बात बीच में ही काटते हुए हम सब बोले – “ घर को जाए |”

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Views: 672

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 5, 2015 at 10:21pm

सोमेश जी

कहानी के निम्नांकित तत्वोमे उद्देश्य का विशेष महत्त्व है  i यदि कहानी उद्देश्यपूर्ण नहीं है और उससे कोई शिक्षा नहीं मिलती या समाज को कोई मैंसेज नहीं जाता तो उसका कोई अर्थ नहीं है  i जहा तक वर्णन की बात है  हम किसी प्लेटफार्म, बाजार, अस्पताल के दृश्य  का भी रोचक वर्णन कर सकते है पर वह कहानी  तो नही हुयी i कहानी के अनिवार्य तत्व  इस प्रकार है-

 कथावस्तु,  पात्र अथवा चरित्र-चित्रणकथोपकथन अथवा संवाद ,  देशकाल अथवा वातावरणभाषा-शैली  और उद्देश्य

Comment by Hari Prakash Dubey on March 5, 2015 at 9:51pm

सोमेश भाई ,आंचलिक शब्दों का खूबसूरत प्रयोग हुआ है ,बधाई आपको इस कहानी के लिए !

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 4, 2015 at 6:04pm

बहुत सुन्दर आदरणीय सोमेश कुमारजी ......अंत तक कहानी में रोचकता बनी रहती है और पाठक शादी की दावत में खो सा जाता है .

सादर बधाई स्वीकार करे.!

Comment by Shyam Narain Verma on March 4, 2015 at 3:41pm
बहुत-बहुत बधाई इस शानदार लघु कथा के लिए

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service