For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फागुन मन कंगाल सखी (राजेश कु0 झा)

बनिक भए

रंगरेज मेरे

बिछुआ, पायल

बेहाल सखी

फन काढ़

समीरन लाल चले

अंतर धधके सौ ज्‍वालमुखी

गठ जोड़ नयन

स्‍वादे आहट

कनखी जी का

जंजाल सखी

इत राग महावर

झाईं पड़े

उत फागुन है उत्‍ताल सखी

मन के झूमर

चुप बैठ गए

चूते अमिया

दुरकाल सखी

भ्रू-चाप चुने

महुआ नागर

मुसकै भदवा बैताल सखी

रस रस गलती

चलती चरखी

हर आस भई

पातालमुखी

अरदास खड़े

बिंदी, अंजन

दै कंगना भी सुर-ताल सखी

(पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 875

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on March 21, 2013 at 5:33pm

आदरणीय सौरभ जी, आप सबकुछ कहें पर सादर और निवेदन जैसे शब्‍दों का प्रयोग मेरे लिए ना करें, मेरा मन आहत होता है । आपने सही कहा है समयाभाव अत्‍यधिक है, मेरी निरंतरता में कमी इसका द्योतक है । अपनी तरफ से कोशिश करता हूं कि साध कर लिखूं पर क्‍या करूं कि आपका कद ही इतना ऊँचा है कि हाथ बस हवा को ही टटोलते रह जाते हैं । शायद एक दो झिड़की पड़नी जरूरी है, कभी समय मिले तो मेरी एक-दो रचना का पूरा का पूरा पोस्‍टमार्टम कर दें, थोड़ा कष्‍ट होगा पर शायद उससे काई, झांई मिट जाएगी । सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 1:29am

ऐसी अभिनव, इतनी उच्च अभिव्यक्तियों का इस तरह से आकार ग्रहण करना सालता है. लेकिन क्या कर सकता हूँ ? संभव है, आपकी ओर समयाभाव हो.

वैसे इस बार आपका यह नवगीत बहुत-बहुत सधा हुआ है. आप बधाई लें, आदरणीय राजेश झाजी. 

सादर निवेदन : मेरे कहे का बुरा मत मानियेगा. रचना को पढ़ कर मन इतना प्रसन्न हुआ है कि पंक्ति-पंक्ति में जीता गया.

Comment by Yogi Saraswat on March 13, 2013 at 2:33pm

मन के झूमर

चुप बैठ गए

चूते अमिया

दुरकाल सखी

भ्रू-चाप चुने

महुआ नागर

मुसकै भदवा बैताल सखी

रस रस गलती

चलती चरखी

हर आस भई

पातालमुखी

अरदास खड़े

बिंदी, अंजन

दै कंगना भी सुर-ताल सखी

बहुत सुन्दर ! मन को हर्षित करते शब्द झा साब

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 13, 2013 at 10:22am

भाई राजेश झा जी बहुत सही और अच्छा लिखा है | जब मन उल्लासित होता है और अगर उसमे भी बसंत और फाल्गुन की मस्ती 

साथ हो तो फिर कंगा से भी सुर-ताल की ही सुन्दर ध्वनि सुनाई देती है | हार्दिक बधाई 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 13, 2013 at 7:49am

वाह वाह साहब क्या जोरदार रचना हुई है

प्रवाह भरा गीत आंचलिक शब्दों से पगा ये मधुर गीत

बहुत बहुत बधाई आपको इस सुन्दर रचना हेतु

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 13, 2013 at 4:19am

बहुत ही सुन्दर झा साहब!

अरदास खड़े

बिंदी, अंजन

दै कंगना भी सुर-ताल सखी

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 12, 2013 at 9:16pm

आदरणीय राजेश कुमार झा जी बहुत अच्छी रचना लगी,,,,,,,मेरे तरफ़ से बधाई आपको,,,,,,,भाई साहब,,,,,,,,,,,,,

Comment by mrs manjari pandey on March 12, 2013 at 6:46pm

आदरणीय    राजेश जी बहुत सुंदर रचना " बनिक भये रंगरेज मेरे बिछुवा पायल सब ........

Comment by ram shiromani pathak on March 12, 2013 at 5:37pm

बहुत बढ़िया आदरणीय राजेश जी-

रस रस गलती

चलती चरखी

हर आस भई

पातालमुखी

अरदास खड़े

बिंदी, अंजन

दै कंगना भी सुर-ताल सखी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 12, 2013 at 4:27pm

 आदरणीय राजेश कुमार झा जी अच्छी रचना लगी, आंचलिक शब्दों का प्रयोग मुग्धकारी है,बधाई स्वीकार करें । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
22 minutes ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
2 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service