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स्वार्थ नें राष्ट्र की है सजाई चिता-----ग़ज़ल

212 212 212 212

स्वार्थ नें राष्ट्र की है सजाई चिता

जाति की अग्नि से चिट चिटाई चिता

भारती माँ तड़प कर कराहे सुनो

पूछती जीते जी क्यूँ सजाई चिता?

प्रीत के व्योम पर द्वेष धूम्राक्ष है

लोभियों नें वतन की जलाई चिता

राजगद्दी के लोभी हैं शामिल सभी

पूछिए मत कि किसनें लगाई चिता?

आग है जो लगी आप जल जाएंगे

बढ़ के आगे न यदि जो बुझाई चिता

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 5, 2018 at 9:42pm

सामयिक सारगर्भित चिन्तन 

Comment by Samar kabeer on April 5, 2018 at 11:27am

अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

आख़री शैर को थोड़ा समय और दीजिये ।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 5, 2018 at 10:55am

हार्दिक बधाई आदरणीय पंकज जी । बेहतरीन गज़ल।

राजगद्दी के लोभी हैं शामिल सभी

पूछिए मत कि किसनें लगाई चिता?

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2018 at 6:55am

आ. भाई पंकज जी वर्तमान परिप्रेक्ष में सुंदर कथा हुई है हार्दिक बधाई ।

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