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नारी दिवस के दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

माता भगिनी  संगिनी, सुता  रूप  में नार
विपदा दुख पीड़ा सहे, बाँटे लेकिन प्यार।१।


रही जन्म से नार तो, सदा शक्ति का रूप
समझे कैसे खुद रहा, मर्द हवस का कूप।२।


जो नारी का नित करें, पगपग पर सम्मान
संतो सा उनका रहा, सचमुच चरित महान।३।


नारी को जो  कह गये, यहाँ  नरक का द्वार
सब जन उनको जानिए, इस भू पर थे भार।४।


मुझ मूरख का है नहीं, गीता का यह ज्ञान
देवों से बढ़  नार का, कर  मानव सम्मान।५।


बन जायेगा सच कहूँ, मन्दिर सा हर गेह
अगर मानना छोड़ दें, नारी को बस देह।६।

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2018 at 9:10pm

आ. भाई तस्दीक अहमद जी, प्रशंसा व स्नेह के लिए धन्यवाद ।

Comment by Mohammed Arif on March 8, 2018 at 9:09pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आदाब,

  .                             नारी की गरिमा-गौरव , शक्ति सामर्थ्य को रेखांकित करते बहुत ही उम्दा दोहे । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2018 at 9:08pm

आ. भाई ब्रजेश जी, दोहों का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन करने हेतु आभार ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 8, 2018 at 8:53pm

जनाब भाई लक्ष्मण धामी साहिब ,संदेश देते हुए सुन्दर दोहे हुए हैं ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 8, 2018 at 7:31pm

उत्तम बहुत उत्तम दोहे रचे आदरणीय..

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