For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल...तुम्हारी याद का मौसम--बृजेश कुमार 'ब्रज'

1222 1222 1222 1222
हमें जब आज़माता है तुम्हारी याद का मौसम
सुकूँ भी साथ लाता है तुम्हारी याद का मौसम

ग़मों ने कोशिशें तो लाख कीं पलकें भिंगोने की
लबों पर मुस्कुराता है तुम्हारी याद का मौसम

हमारे रूबरू ठहरो कभी पल भर तो समझाएं
हमें कितना सताता है तुम्हारी याद का मौसम

इसे मैं छोड़ आता हूँ कहीं सुनसान सहरा में
मगर फिर लौट आता है तुम्हारी याद का मौसम

वहाँ तुम हो तुम्हारी पुरकशिश कमसिन अदाएं हैं
यहाँ 'ब्रज' गुनगुनाता है तुम्हारी याद का मौसम
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 882

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 19, 2017 at 9:51pm

आदरणीय तस्दीक़ जी आपके सुझाव 'पल भर' से शेर और अधिक खूबसूरत हो जायेगा..आपका हार्दिक आभार अभी सुधार करता हूँ..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 19, 2017 at 9:49pm

आदरणीय समर कबीर जी रचना पटल पे आपकी उपस्थिति सदैव ही उत्साहवर्धक होती है..स्नेह बनाये रखें..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 19, 2017 at 9:47pm

आदरणीय सुशील सरना जी खूबसूरत शब्दों में सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 19, 2017 at 9:46pm

आदरणीय अजय तिवारी जी बहुत बहुत धन्यवाद..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 19, 2017 at 9:45pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी रचना पटल पे आपका स्वागत संग आभार व्यक्त करता हूँ..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 19, 2017 at 9:44pm

आदरणीय अफरोज जी आपका स्वागत एवं आभार..अपने टंकण त्रुटियों की ओर ध्यानाकर्षण किया उन्हें में शीघ्र ही दूर करता हूँ..चौथे शेर के विषय में आपकी सलाह स्वागतयोग्य है।ये ऐसी भूल है जिसे मुझ जैसे नए लोग अक्सर नजरन्दाज करते है।आपका सुझाव भी खूबसूरत है..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 19, 2017 at 9:39pm

आदरणीय मुहम्मद आरिफ जी आपका हार्दिक आभार...सादर

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 19, 2017 at 9:19pm

वाह बेहतरीन गजल कही है आदरणीय ब्रजेश भाई जी

Comment by SALIM RAZA REWA on December 19, 2017 at 6:30pm
वाह बृजेश जी वाह इस...
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 19, 2017 at 5:58pm

जनाब ब्रजेश कुमार साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें ।टाइप गलती के बारे में अफ़रोज़ साहिब ने इशारा कर दिया है ।

शेर 3 उला मिसरे में दो पल की जगह  इक पल या  पल भर  ज़्यादा सही रहेगा ,देखियेगा 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
8 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
Thursday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service