For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जल रहें हैं गीत देखो (गीत) - मिथिलेश वामनकर

वेदना अभिशप्त होकर,

जल रहें हैं गीत देखो।

 

विश्व का परिदृश्य बदला और मानवता पराजित,

इस धरा पर खींच रेखा, मनु स्वयं होता विभाजित ।

इस विषय पर मौन रहना, क्या न अनुचित आचरण यह ?

छोड़ना होगा समय से अब सुरक्षित आवरण यह।

कुछ कहो, कुछ तो कहो,

मत चुप रहो यूँ मीत देखो।

वेदना अभिशप्त होकर,

जल रहें हैं गीत देखो।

 

मन अगर पाषाण है, सम्वेदना के स्वर जगा दो।

उठ रही मष्तिष्क में दुर्भावनायें,  सब भगा दो।

कुछ करो निश्चित, अनिश्चित से जगत की क्षति सुनिश्चित।

शक्ति बिखरी है, समेटो, पुंज उर्जा का हो  अर्जित।

सुख मिलेगा उस घड़ी,

जब हार में भी जीत देखो।

वेदना अभिशप्त होकर,

जल रहें हैं गीत देखो।

 

आज मानवता न जाने किस दिशा में बढ़ रही है?

आधुनिकता से प्रपंचित पाठ कुंठित पढ़ रही है ।

नवग्रहों का श्राप लेकर, क्यों अहम् में सूर्य काला।

ज्ञात हो क्योंकर चतुर्दिक झूठ का है बोलबाला?

सत्य को आँसू मिले हैं,

इस जगत की रीत देखो।

वेदना अभिशप्त होकर,

जल रहें हैं गीत देखो।

 

युग बदलतें हैं प्रयासों से, तनिक यह भान रखना।

एक मानव दूसरे का सीख जाए मान रखना।

एक होंगे इस क्रिया से, दूर हों सारे झमेले।

कब सहज एकांत जीवन? मत रहो ऐसे अकेले।

साथ देखो, हाथ देखो,

प्रेम देखो, प्रीत देखो।

वेदना अभिशप्त होकर,

जल रहें हैं गीत देखो।

 

अनगिनत हैं वेदनाएँ, अनगिनत है धारणाएँ,

लक्ष्य तब ही मित्र होगा, जब नियंत्रित कामनाएँ।

जब मनुजता के लिए ही त्याग या सद्कर्म होगा,

जब मनुजता शर्त होगी और मानव धर्म होगा।

क्षुब्ध मन को प्राप्य तब,

आनंद आशातीत देखो।

वेदना अभिशप्त होकर,

जल रहें हैं गीत देखो।

 

------------------------------------------------------------

(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

Views: 847

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 28, 2016 at 8:10pm

आ० मिथिलेश जी  (14,14) के विन्यास पर रचे इस गीत पर मन मुग्ध है .

आज का है सत्य इसमें

कुछ विशेष अतीत देखो

वेदना अभिशप्त होकर,

जल रहें हैं गीत देखो।-------------------सादर

Comment by नाथ सोनांचली on December 28, 2016 at 6:55pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर अभिवादन, आपने बहुत बढ़िया ढंग से मनोभावो को प्रतिबिंबित किया है।
कुछ कहो, कुछ तो कहो,
मत चुप रहो यूँ मीत देखो।
वेदना अभिशप्त होकर,
जल रहें हैं गीत देखो।
मुझे यह रचना बहुत अच्छी लगी, बेहतरीन सृजन के लिए दिल खोल कर बधाई निवेदित हैं।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2016 at 6:29pm

आदरणीय श्याम नरेन् जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2016 at 6:28pm

आदरणीय समर कबीर जी, आपकी प्रशंसा से आश्वस्त हूँ. इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on December 28, 2016 at 5:38pm
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति , हार्दिक बधाई ।
Comment by Samar kabeer on December 28, 2016 at 5:03pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब,बहुत सुंदर गीत रचा आपने,आनन्द आ गया,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2016 at 2:03pm

आदरणीय डॉ. आशुतोष जी, व्यस्तताओं के कारण मैं स्वयं भी एक लम्बे अंतराल के बाद मंच पर सक्रीय हो पाया हूँ. किन्तु इसकी निरंतरता को बनाए रखना ही मेरा प्रथम प्रयास रहेगा. आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर आश्वस्त हूँ. इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका. 

गीत और नवगीत के कोई स्पष्ट नियम हैं इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है. हाँ इनके विषय में आदरणीय सौरभ सर की एक टीप है जो आपकी जिज्ञासा को शांत कर सके- " आदरणीया, गीत और नवगीत के बीच के अंतर को उस पाठक को समझा पाना मेरे लिए उतना सहज नहीं है, कारण कि, जिस पाठक की रचना यात्रा इस क्षेत्र में अभी प्रारम्भ ही होने को है, उसे कई विन्दु अबूझ लग सकते हैं.. फिर भी मैं एक संक्षिप्त किन्तु तार्किक प्रयास करता हूँ. 

गीत वस्तुतः भावाभिव्यक्ति के नैसर्गिक शाब्दिक संप्रेेषण हैं जिनमें रचनाकार की भावदशा एक वातावरण रचती है और उक्त अभिव्यक्ति के सभी बन्द विषय विशेष के इर्द-ग़िर्द व्याख्या या सामान्य कहन पाते हैं. गीत के रचनाकार यानी गीतकार अपनी नितांत वैयक्तिक भावनाओं को शाब्दिक करने से लेकर सामाजिक रूप से प्रभावी किन्तु सापेक्षतः व्यक्तिगत घटनाओं का वर्णन अधिक करता है. इनमें निजता अधिक बखान पाती है. गीत भारतीय भूभाग के सनातन काल से मानवीय दशाओं तथा अंतर्निहित सम्बन्धों को उजागर करते रहे हैं. 

जबकि नवगीत अपेक्षाकृत बहुत ही नयी विधा है. जो पचास के दशक में प्रकाश में आयी. नवगीत के माध्यम से रचनाकार आधुनिक जीवन की विसंगतियों और मनुष्य की सामाजिक भावनाओं को शब्दबद्ध करता है. इनके बिम्ब और उनका बर्ताव नयापन लिये होता है. निराला की अमर पंक्ति ’नव गति, नव लय, ताल-छन्द नव’ इनके होने की प्रेरणा है. 

दोनों विधाएँ छान्दसिक होती हुई भी कई अर्थों में प्रच्छन्न होती है.

जैसे, गीत छन्द को शुद्ध रूप से मानते हुए भी कई बार अभिव्यक्ति में दशा की बारम्बारता को शाब्दिक करने के चलते उनके मूल स्वरूप से अलग व्यवहार करते हैं. लेकिन यह अवश्य है कि अधिकांश गीत छन्द पर आधारित होते हैं.

जबकि नवगीत छन्दों को समझते हैं लेकिन आग्रही नहीं होते. अलबत्ता मात्रिकता का निर्वहन अनिवार्य होने से पंक्तियों का वाचन प्रवाह में होता है. सामाजिक विसंगतियों को स्वर देते नवगीतों में रचनाकार स्वानुभूति के माध्यम से सामाजिक दशाओं को सामने लाता है."

आपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ. सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 28, 2016 at 1:17pm

आदरणीय मिथिलेश जी आपकी रचनाओं का इंतज़ार रहता है बहुत दिनों बाद मंच पर आना हुआ और आपकी रचना पढने का सुभाग्य मिला. बहुत ही शानदार गीत है ..गीत और नव गीत के नियमों की जानकारी की लिंक देने का कष्ट करें .नव बर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service