For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पूंजियों की सीरतें भी काली गोरी देखिये(ग़ज़ल 'राज '

2122  2122  2122  212

कर की चोरी देखिये जी धन की चोरी देखिये

लूटकर पकड़े गये तो जब्रजोरी देखिये

 

नोट्बंदी देखिये जी नोट खोरी देखिये

पूंजियों की सीरतें  भी काली गोरी देखिये

 

नोट्बंदी का हथौड़ा ऐसा बैठा पीठ पर

भ्रष्टता की सरबसर टूटी तिजोरी देखिये

 

बह रहे हैं नोट सारे वो पुराने हर जगह

क्या समन्दर क्या नदी तालाब मोरी देखिये

 

लूटखोरी की बदौलत खत्म पैसे बैंक में

 लाइनों की टूटती अब आस डोरी देखिये 

 

कुछ जुगाडू  भेड़िये बैठे वतन में अबतलक

पास उनके अब नई नोटों की बोरी देखिये

 

कह रहे अखबार टीवी कह रही सरकार है

आने वाले वक़्त में तस्वीर कोरी देखिये

----------मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 902

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 14, 2016 at 10:46am

आ० महेंद्र कुमार जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत- बहुत शुक्रिया आपका |

Comment by Ravi Shukla on December 14, 2016 at 10:38am

आदरणीया राजेश दीदी  समसामयिक गजल पर हार्दिक बधाई स्‍वीकार करें । हमारा विचार है नये नो‍टों की बोरी देखिये हो तो शायद उपयुक्‍त हो नोट पुल्लिंग है । सादर 

Comment by Mahendra Kumar on December 14, 2016 at 9:48am
आदरणीया राजेश मैम, वर्तमान परिस्थितियों पर सार्थक ग़ज़ल लिखी है आपने। मेरी तरफ से हार्दिक बधाई प्रेषित है। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 14, 2016 at 9:03am

आद० सुशील सरना जी,ग़ज़ल पर प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार आपका सादर . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 14, 2016 at 9:01am

आद० समर भाई जी ,ये समसामयिक ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हो गया तहे दिल से आभारी हूँ .

Comment by Sushil Sarna on December 13, 2016 at 8:07pm

वर्तमान  हालात के मद्देनज़र  बहुत ही सशक्त ग़ज़ल की प्रस्तुति की है आदरणीया राजेश कुमारी जी। दिल से बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Samar kabeer on December 13, 2016 at 8:07pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
मतले के सानी मिसरे में 'जब्र ज़ोरी' की सही तरकीब "ज़ोर जब्र"होती है,फिर भी क़ाफ़िया चल जायेगा ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 13, 2016 at 7:22pm

मिथिलेश भैया,ग़ज़ल पर आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया मिली बहुत बहुत आभारी हूँ | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 13, 2016 at 4:20pm

आदरणीया राजेश दीदी, आपने तो नोटबंदी और उसके बाद की स्थिति पर पूरी ग़ज़ल ही कह दी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. वास्तविकता को उजागर करते अशआर प्रभावकारी हुए है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service