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ग़ज़ल - तफ़्सील में गये तो वो ख़ुद से ख़फ़ा मिले ( गिरिराज भंडारी )

221 2121   1221   212 

जो खोजते हैं रोज़ कोई मुद्दआ मिले

तफ़्सील में गये तो वो ख़ुद से ख़फ़ा मिले

 

नफरत मिली है देखिये नफरत से इस तरह  

मजबूरियों में तेल ज्यूँ पानी से जा मिले

 

हारे हुए मिलेंगे जहाँ खार कुछ तुम्हें
मुमकिन है उस जगह से मिरा भी पता मिले"  

 

हम दिल से चाहते हैं उन्हें दाद हो अता 

जो नेवले की जात हो, साँपों से जा मिले

 

बादल बरस के साथ ही ऐलान कर गया

क़िस्मत ही फैसला करे, अब तुझको क्या मिले

 

इंसान ही ज़मीन पे मिल जाये तो बहुत

चाहत नहीं है कोई मुझे देवता मिले

 

हर वक़्त मांगता है वफा , क्या तुझे हुआ ?

ये कौन चाहता है कि उसको गदा मिले

 ************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 2, 2016 at 1:19pm

आदरणीय वासुदेव भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका  हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 2, 2016 at 1:19pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on December 2, 2016 at 12:20pm
आदरणीय गिरिराज जी बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है। हृदय से बधाई स्वीकार करें।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 2, 2016 at 11:41am

ऑ० भाई गिरिराज जी  ,सादर अभिवादन , इस सूंदर गश के लिए हार्दिक बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 2, 2016 at 11:33am

आदरणीय समर भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।

// इंसान ही ज़मीन पे मिल जाये तो बहुत" //  बहुत अछी सलाह है -- स्वीकार है

नक्शे पा  वाले शेर के लिये कुछ सलाह दीजिये -- इस शेर पर बहुत समय दिया था , और कुछ सूझा नही , आप ही कोई हल बतायें ॥



सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 2, 2016 at 11:18am

आदरणीया निधि जी , गज़ल पर उपस्थिति और उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार ।

Comment by Samar kabeer on December 2, 2016 at 10:42am
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,बढ़िया ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबफ क़ुबूल फरमाएं ।
तीसरे शैर में 'नक़्श-ए-पा'बहु वचन का सीग़ा है इसलिए 'मिलें'होना चाहिए,जबकि आपकी रदीफ़ "मिले"है, देखियेगा ।
छटे शैर का ऊला मिसरा लय में नहीं लग रहा,इसे इस तरह करें तो रवानी में आजायेगा:-
"इंसान ही ज़मीन पे मिल जाये तो बहुत"
Comment by Nidhi Agrawal on December 2, 2016 at 10:37am

व्व्वाआआअह्ह्ह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय गिरिराज जी. मुबारकबाद और दाद कुबूल कीजिये 

हारे हुये मिलेंगे तुम्हें खार कुछ वहीं

तुम खोजना, जहाँ भी मेरे नक्श-ए-पा मिले   .. एक एक शेर एकदम हीरा मोती जैसा 

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