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ग़ज़ल -चरागों को जलाने का कोई तो ढब ज़रूरी है ( गिरिराज भंडारी )


1222    1222    1222    1222 

मुख़ालिफ इन हवाओं में ठहरना जब ज़रूरी है

चरागों को जलाने का कोई तो ढब ज़रूरी है

 

रुला देना, रुलाकर फिर हँसाने की जुगत करना

सियासत है , सियासत में यही करतब ज़रूरी है

 

उन्हें चाकू, छुरी, बारूद, बम, पत्थर ही दें यारो  

तुम्हें किसने कहा बे इल्म को मक़तब ज़रूरी है

 

तगाफुल भी ,वफा भी और थोड़ी बेवफाई भी

फसाना है मुहब्बत का, तो इसमें सब ज़रूरी है

 

पतंगे आसमाँनी हों या रिश्ते हों ज़मीनों के

यहाँ पर ढील भी, जानें कि, देना कब ज़रूरी है

 

वो दे कर ज़ह्र,.. मेरा वक़्त में करते हैं चारा भी 

मेरा मरना, मेरा जीना उन्हें तो सब ज़रूरी है

 

हवा की सरसराहट को भी कुत्ते भाँप सकते हैं

तो फिर इंसाँ तो ये जाने बयाँ क्या?..कब ज़रूरी है

 

अगर अंजाम हर इक ज़िन्दगी का मौत ही है, तो

तुम्हीं कह दो, कहाँ ,कैसे ,किसीको रब ज़रूरी है
*********************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on September 26, 2016 at 11:45pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,वाह वाह,बहुत ख़ूब, शानदार ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

"हवा की सरसराहट को भी कुत्ते भौंक सकते हैं
मगर इंसाँ तो ये जाने बयाँ क्या?..कब ज़रूरी है"

इस शैर के भाव मुझे कुछ समझ नहीं आये ? मैं इस शैर के ऊला मिसरे को इस तरह पढ़ रहा हूँ :-

"हवा कि सरसराहट को भी कुत्ते भाँप लेते हैं"

आपका क्या ख़याल है ?
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 26, 2016 at 4:02pm
वाह ...// पतंगे आसमाँनी हों या रिश्ते हों ज़मीनों के, यहाँ पर ढील भी, जानें कि, देना कब ज़रूरी है// .. पाँचवें व सातवें बेहतरीन अशआर के साथ बढ़िया पेशकश के लिए तहे दिल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय गिरिराज भंडारी जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2016 at 3:34pm

वाह आ. गिरिराज भंडारी जी बेहतरीन ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 26, 2016 at 1:52pm

आ. श्री गिरिराज भंडारी जी.... एक और बेहद उम्दा ग़ज़ल आपके जानिब से !!
वाह !!! वाह !!! वाह !!!
बहुत अच्छी अदायगी के लिये आपको कोटिशः बधाईयां !!!

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