For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गाय हमारी माता है
हमको कुछ नहीं आता है..

हमको कुछ नहीं आता है
कि, गाय हमारी माता है !

गाय हमारी माता है
और हमको कुछ नहीं आता है !?

जब गाय हमारी माता है
हमको कुछ क्यों नहीं आता है ?

गाय हमारी माता है
फिरभी हमको कुछ नहीं आता है !

फिर क्यों गाय हमारी माता है..
जब हमको कुछ नहीं आता है ?

तो फिर, गाय हमारी कैसी माता है
कि हमको कुछ नहीं आता है ?

चूँकि गाय हमारी माता है..
क्या इसलिए हमको कुछ नहीं आता है ?

यानी, हमको कुछ नहीं आता है
इसलिए कि गाय हमारी माता है ?

या फिर, गाय हमारी माता है
इसके आगे हमको कुछ आता ही नहीं है..

भाई, ये गाय हमारी कैसी माता है ?
कि, हमको कुछ आता-जाता ही नहीं है ?

गाय हमारी माता है भी ?
क्योंकि हमको तो कुछ आता ही नहीं है !

गाय हमारी माता है
अब गाय भला हमारी कैसी माता है ?

हमको कुछ नहीं आता है..
हमको कुछ क्यों नहीं आता है ?

या फिर, गाय हमारी माता है..
इसके अलावा हमको सब कुछ आता है !

या, गाय हमारी माता है..
इसके अलावा हमको कुछ नहीं आता है !

या, न गाय हमारी माता है
न हमको कुछ आता-जाता है !

या, गाय हमारी उतनी ही माता है
जितना हमको आता और भाता है !!

या, गाय हमारी कैसी माता है,
ये हमको खूब समझ में आता है !

या, गाय हमारी कितनी माता है
ये हमको ही नहीं सब को खूब समझ में आता है !
**************
--सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1097

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 6, 2016 at 11:32pm
शब्दों और विराम चिन्हों का अद्भुत संयोजन! भावों, प्रश्नों, उत्तरों का शिल्पबद्ध प्रवाहमय अद्भुत संगम! "कुछ/आता/जाता/माता/गाय" के साथ प्रश्नवाचक शब्दों के प्रयोग से शिल्प की क्षमता बताती अद्भुत प्रभावोत्पादक, विचारोत्तेजक कटाक्ष पूर्ण रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई और आभार आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी। आलेखों, निबंधों, प्रवचनों, भाषणों को न्यूनतम शब्दों में ऐसे भी समेट कर गागर में सागर द्वारा पाठकों को आंदोलित किया जा सकता है, वाह, बहुत सुंदर उत्कृष्ट प्रेरक लेखन !
Comment by नादिर ख़ान on August 6, 2016 at 10:13pm

या, गाय हमारी उतनी ही माता है 
जितना हमको आता और भाता है !!

या, गाय हमारी कैसी माता है, 
ये हमको खूब समझ में आता है !

या, गाय हमारी कितनी माता है 
ये हमको ही नहीं सब को खूब समझ में आता है ! 

इतनी सहज पंक्तियों से रचना का अगाज़  हुआ और अंत तक पहुँचते  पहुँचते पंक्तियाँ कितनी गंभीर हो गई ...इस विषय पर गंभीरता से विचार ज़रूरी है और आदरणीय सौरभ सर आपने रचना को जो विस्तृत आयाम दिया वह  काबिले तारीफ है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 6, 2016 at 9:03pm
 वाह्ह्ह्हह बचपन में कहा करते थे गाय हमारी माता है हमको कुछ नहीं आता है न तब सोचा न अब सोचा कि हमको कुछ क्यूँ नही आता है चलिए हमने नहीं आपने तो सोचा पर प्रश्न वही का वही है कि हमको कुछ क्यूँ नहीं आता है ...हाहाहा ..मजा आ गया पढके ....एक पंक्ति और थी बैल हमारा बाप है नम्बर देना पाप है ...प्रश्न भला नम्बर देना क्यूँ पाप है? ये तो शिक्षक ही बता पायेंगे :)
 

वैसे  अब  सीरियसली ....गाय को अगर माता  मानते  हैं तो  कितना  मानते  हैं जो पूजनीय हैं पूजते भी हैं किन्तु वास्तविकता में उनके लिए क्या करते हैं हम ये विचारणीय प्रश्न है | बहुत  बहुत  बधाई  आपको आद० सौरभ जी इस चेतना को जगाने  के लिए |

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 6, 2016 at 8:14pm

कल ही खबर देखी जयपुर की गौशाला में गाय हमारी माता के हाल की।इस प्रस्तुति ने यक्ष प्रश्नों को उभारा है। और उत्तरों से उम्दा कटाक्ष किया है। सादर नमन श्रध्देय सौरभ सर।

Comment by Sushil Sarna on August 6, 2016 at 7:48pm

या, गाय हमारी कितनी माता है
ये हमको ही नहीं सब को खूब समझ में आता है !

वाह आदरणीय सौरभ सर वाह .... आज की ज्वलंत समस्या .... आज का ज्वलंत प्रश्न और आज के ज्वलंत प्रश्न का गहन और गंभीर उत्तर ... नमन आपकी लेखनी और विषय को प्रस्तुत करने का निराला अंदाज़ .... यूँ तो हैं दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे , कहते हैं कि सौरभ (ग़ालिब) का है अंदाज़े बयां और ... मंच पर आपकी लेखनी जब भी कुछ सृजन करती हैं सदैव उसमें सीखने के लिए कुछ न कुछ अवश्य होता है। ... आज आपने एक विषय एक भाव को किस तरह अपने लक्ष्य तक पहुंचाया है , सबके सीखने के लायक है। न दुरूह शब्द, न दुरूह प्रस्तुति का संगठन और न ही दार्शिनकता .... . सर इस प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई बधाई बधाई स्वीकार करें।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 6, 2016 at 1:28pm

आदरणीय गिरिराज भाई, आपकी सुधी दृष्टि ने इस प्रस्तुति में कुछ आयाम देखे इस हेतु हार्दिक धन्यवाद.

सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 6, 2016 at 1:22pm

आदरणीया कल्पना जी, रचना के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 6, 2016 at 9:56am

आदरनीय सौरभ भाई , सीधी सरल भाषा मे गउ माता से सम्बन्धित बगुत गहरे प्रश्न  खड़े किये हैं आपनें , जिसका उत्तर हर गाय प्रेमी को जानना ही चाहिये ।  इस गंभीर रचना के लिये हार्दिक बधाई आपको ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 6, 2016 at 9:33am
इस रचना में गौ माता के लिए प्यार और एक दर्द नज़र आ रहा है आदरणीय सर । अप्रतिम रचना है ।सादर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service