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परख सकती नहीं हर आँख गहना रूप का यारो - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’(ग़ज़ल)

1222    1222    1222    1222

जफा कर यूँ  मुहब्बत में  कभी ऊपर  नहीं होते
वफा के  खेत दुनियाँ  में कभी  बंजर नहीं होते।1।

खुशी मंजिल को पाने की वहाँ उतनी नहीं होती
जहाँ  राहों में मंजिल की  पड़े पत्थर नहीं होते।2।

परख सकती नहीं हर आँख गहना रूप का यारो
किसी की सादगी से बढ़  कोई जेवर नहीं होते।3।

नहीं चाहे बुलाता  हो उसे फिर तीज पर नैहर
न छोड़े गर नदी  नैहर  कहीं सागर नहीं होते।4।

यहाँ कुछ द्वार सुविधा के खुले होते जो उनको भी
पहाड़ी  खेत  भी यारो  कभी  बंजर नहीं होते।5।

सिखाए गर न होते गुर हमें भी दोस्तों ने कुछ
तेरी महफिल में हम भी यूँ बने शायर नहीं होते।6।

मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 2, 2016 at 12:12pm

आ० भाई रवि जी हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 2, 2016 at 12:12pm

आ० भाई गिरिराज जी आपको ग़ज़ल अच्छी लगी लेखन सफल हुआ . मार्गदर्शन करते रहें .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 2, 2016 at 12:11pm

आ० कल्पना जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 2, 2016 at 12:10pm

आ० प्रतिभा जी हार्दिक आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 2, 2016 at 12:09pm

आ० भाई आशुतोष जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 2, 2016 at 12:08pm

आ० भाई समर जी प्रशंसा और सलाह के लिए हार्दिक आभार .

Comment by Ravi Shukla on August 1, 2016 at 3:12pm

आदरणीय लक्ष्‍मण जी अच्‍छी गजल कही है दाद और मुबारक बाद हाजिर है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 1, 2016 at 11:47am

आदरणेय लक्षमण भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार कीजिये ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 1, 2016 at 7:07am
वाह । अच्छी ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय लक्ष्मण जी । हार्दिक बधाई ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 29, 2016 at 5:43pm

आदरणीय लक्ष्मण जी ..हर शेर में गहराई है  आपकी जो ग़ज़लें मुझे बेहद पसंद आयें उनमे से एक इस ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर बधाई के साथ 

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