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जफा कर यूँ मुहब्बत में कभी ऊपर नहीं होते
वफा के खेत दुनियाँ में कभी बंजर नहीं होते।1।
खुशी मंजिल को पाने की वहाँ उतनी नहीं होती
जहाँ राहों में मंजिल की पड़े पत्थर नहीं होते।2।
परख सकती नहीं हर आँख गहना रूप का यारो
किसी की सादगी से बढ़ कोई जेवर नहीं होते।3।
नहीं चाहे बुलाता हो उसे फिर तीज पर नैहर
न छोड़े गर नदी नैहर कहीं सागर नहीं होते।4।
यहाँ कुछ द्वार सुविधा के खुले होते जो उनको भी
पहाड़ी खेत भी यारो कभी बंजर नहीं होते।5।
सिखाए गर न होते गुर हमें भी दोस्तों ने कुछ
तेरी महफिल में हम भी यूँ बने शायर नहीं होते।6।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आ० भाई रवि जी हार्दिक धन्यवाद .
आ० भाई गिरिराज जी आपको ग़ज़ल अच्छी लगी लेखन सफल हुआ . मार्गदर्शन करते रहें .
आ० कल्पना जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आ० प्रतिभा जी हार्दिक आभार .
आ० भाई आशुतोष जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आ० भाई समर जी प्रशंसा और सलाह के लिए हार्दिक आभार .
आदरणीय लक्ष्मण जी अच्छी गजल कही है दाद और मुबारक बाद हाजिर है
आदरणेय लक्षमण भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार कीजिये ।
आदरणीय लक्ष्मण जी ..हर शेर में गहराई है आपकी जो ग़ज़लें मुझे बेहद पसंद आयें उनमे से एक इस ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर बधाई के साथ
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