For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क़िताब ख़ास लिखी जाएगी जो आज कोई (ग़ज़ल 'राज ')

1212  1122  1212  112/22

बह्र –मुजतस मुसम्मन मख्बून मक्सूर

 

तनाव से ही सदा टूटता समाज कोई

लगाव से ही सदा फूलता रिवाज कोई

 

पढ़ेगी कल नई पीढ़ी उन्हीं के सफ्हों को

क़िताब ख़ास लिखी जाएगी जो आज कोई

 

न ख़्वाब हो सकें पूरे कहीं बिना दौलत

बना सकी न मुहब्बत गरीब ताज कोई

 

सियासतों में बगावत नई नहीं यारों

कभी चला कहाँ आसान राजकाज कोई

 

सभी मिलेंगे यहाँ छोड़कर शरीफों को

कोई फरेबी यहाँ और चालबाज कोई  

 

नचा रहे सभी एक  दूसरे  को यहाँ  

बजा रहा कोई ढपली कहीं पे साज कोई  

 

पँहुचते ही नहीं पैसे गरीब तक पूरे

कमाई ले उड़े जब बीच में ही बाज़ कोई

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 1582

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 18, 2016 at 9:39am

आद० श्री सुनील जी ,आपको ग़ज़ल व् चर्चा ने प्रभावित किया आपका तहे दिल से शुक्रिया ऐसी चर्चाएँ बहुत कुछ सीख देती हैं |

Comment by shree suneel on July 18, 2016 at 3:30am
अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीया राजेश कुमारी जी. साथ हीं इस ग़ज़ल के बहाने सार्थक चर्चाएं भी हुईं.
हार्दिक बधाई आपको इस उम्दा ग़ज़ल के लिए. सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 16, 2016 at 5:54pm

जयनित कुमार मेहता जी ,ये ग़ज़ल आपको अच्छी लगी जर्रानवाजी का तहे दिल से शुक्रिया |

Comment by जयनित कुमार मेहता on July 16, 2016 at 5:42pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी, अच्छे अशआर हुए है। इस ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई आपको।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 16, 2016 at 8:14am

 आदरणीय समर भाई , आपकी इस प्रतिक्रिया से हार्दिक प्रसन्नता हुई । जिस भाषा और विधा से हम जुड़े हुये हैं उसके प्रति हमारा भी फर्ज़ है , कि इमानदारी से हम अपनी सीखी जानी हुई जानकारी रखें , चाहे कोई माने या न माने । हमारी निगाह उस भाषा और विधा के सामने झुकीं न रहें , चाहे वो उर्दू भाषा हो या हिन्दी । एक भाषा हमारी माँ है तो दूसरी हमारी मौसी । किसी भी भाषा को गरीब विधवा की बेटी की तरह न बरता जाये । मै केवल अपनी निगाह मे गिरना को गिरना मानता हूँ , दुनिया चाहे जो कहे । इस फैसले के लिये आपको हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by Samar kabeer on July 15, 2016 at 10:43pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,मैंने आपका उद्देश्य समझ लिया है,आगे से इस मंच पर अगर बड़े शाइरों का नाम लेकर कोई ग़लती करेगा तो उसे बराबर बताया जायेगा ,माने चाहे न माने ,हम अपना फ़र्ज़ ज़रूर अदा करेंगे,मैं इस उद्देश्य में आपके साथ हूँ ।
चचा ग़ालिब के यहाँ इस तरह की बेशुमार ग़लतियाँ हैं जिस पर तनक़ीद निगारों ने उन्हें भी नहीं बख़्शा है ,आपने तो उनकी बहुत छोटी सी ग़लती बताई है ,कुछ उदाहरण देखिये :-

"बस की मुश्किल है हर इक काम का आसाँ होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना"

:- इस मतले में ईताए जली का दोष है ,उनका एक मतला और देखिये :-

"इब्न-ए-मरयम हुवा करे कोई
मेरे दुःख की दवा करे कोई"

:- इस मतले में क़ाफ़िया निर्धारित नहीं है,दोनों मिसरों में 'वा' 'वा' है ,जो क़ाफ़िया नहीं है,उनकी इसी ग़ज़ल में अगले क़ाफ़िये 'अलिफ़' के हैं जैसे :- 'सुना करे कोई' ।
इस बात का वादा है कि आगे से इस बारे में हम दोनों इसे इक मिशन की तरह लेंगे ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 15, 2016 at 8:13pm

आदरणीय समर भाई , माफी जैसी की गलती आपने नही की है , बल्कि आपने सही बात की है , जिसे मै पहले से ही स्वीकार कर चुका हूँ अभी और स्वीकार कर रहा हूँ । दर अस्ल मेरा उद्देश्य आप नही समझ पाये , मेरा कुल मिला कर उद्देश्य अज़ीम शुउउअरा से जाने अनजाने की गई गलती या ले ली गई छूट को गलत कह सकने के विषय मे था । अगर उसी तर्ज़ पर कोई नया शायर गलती करे तो हम जब टोक कर सुधारने की बात कहते हैं तो हम क्यूँ नही मान सकते कि फलाँ शारयर ने ये छूट नाजायज़ तौर पर ली है , क्यूँ उसे सही ठहरा कर दुहराने के पीछे लगे रहते हैं । हम अगर गलत कह भी दें तो उनकी अज्मत मे कोई कमी नही आयेगी , वो वहीं रहेंगे , पर हम तो निश्पक्ष साबित हो जायेंगे , ये क्या फन के प्रति इमानदारी नही है ?
नीचे लिखी बात मेरा न तो प्रशन ही है , नही किसी की गलती निकालने का प्रयास , अब मै वोकाम अन्ही करूँगा -- लेकिन आपने पूछा है तो कह रहा हूँ --

देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़     ---   मेरी आनकारी मे बुत का बहुवचन  बुतान होता है । बुतों सही नही है - स्वीकार किया गया शब्द है ।

मेरा दुख केवल इतना है कि   --   चूँ कि गालिब चचा  ने बुतों कह दिया है  , आगे से बुतों जाइज़ हो गया । क्या हमे ऐसे ही किसी बड़े शाइर के द्वारा किसी और छूट लिये जाने का इंतिज़ार करना चाहिये , किसी प्रयोग को सही साबित करने के लिये । तब हमे उनका अनुसरण करना चाहिये , उदाहरण देकर कि फलाँ शायर का कहा जब सही है  तो मेरा भी सही है ।
मेरा उद्देश्य इस मंच पर इस परम्परा पर लगाम लागाने के सिवा और कुछ नही था , नही है  और न रहेगा ।

अनुसरण भी करें तो कमसे कम स्वीकार तो करें कि ये गलती थी , लेकिन अब स्वीकार है ।

आ. समर भाई , आप तो हमारे उस्ताद हैं , आप हिम्मत नही करेंगे तो कौन करेगा ?  क्षमा जैसी कोई बात नही है , कृपया भूल जाइये ।

Comment by Samar kabeer on July 15, 2016 at 6:59pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,आपने मेरी बात को अन्यथा लिया इसका दुःख है, और अगर मेरी किसी बात से आपका दिल दुखा हो तो में तहे दिल से मुआफ़ी चाहता हूँ ।
मेरा पिछला रिकार्ड गवाह है की में जहां भी किसी ग़लती को देखता हूँ अपनी तरफ़ से उसके सुधारने का काम ज़रूर करता हु,फिर वो कोई भी हो,ये तो आपने ख़ुद देखा है, आगे भी आपसे वादा है कि यहिके करूँगा ।
ग़ालिब साहिब का जो मिसरा आपने लिखा है में समझ नहीं पाया कि इसमें मुझसे क्या चाहते हैं ?
"सीमाब"साहिब ने अपनी एक ग़ज़ल में ये शैर कहा है:-
"गेर मश्रूत रिहाई मुझे दे दी 'सीमाब'
उसने मंज़ूर गुनाहों का कफआरा न किया"
सही शब्द है कफ़्फ़ारा,मेने जब ये ग़ज़ल पढ़ी थी उस वक़्त अपना ऐतराज़ दर्ज करा दिया था,आगे भी यही अमल रहेगा इंशाअल्लाह ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 15, 2016 at 12:18pm

आद० सुलभ जी ,आद० गिरिराज जी मैं आपके  विचारों का सम्मान करती हूँ ,
अपनी भाषा का सम्मान करती हूँ तथा अन्य भाषाओं का भी सम्मान करती हूँ  ये एक सार्थक चर्चा है आप इसे अन्यथा कतई नहीं लेंगे |
हम एक दुसरे को व्याकरण सम्बन्धी जानकारी देते चलें जैसे हम  उर्दू शब्दों को लेकर भ्रम में हो जाते हैं और उर्दू वाले हमे सलाह देते हैं उर्दू वाले कोई हिंदी शब्द ग़लत करते हैं हम भी अपने फ़र्ज़ के अनुसार  उसे सही सलाह देते हैं  इसी तरह उर्दू वालों को फारसी वाले समझाते आये हैं | सीखने सिखाने से ही विधाओं का विकास होता है कहीं किसी  को कोई बाध्यता में नहीं बांध ता  बाकी तो सब अपने अपने में स्वतंत्र हैं बहस की बातों का कोई अंत नहीं होता | सार्थक चर्चा स्वागतीय है |

Comment by Sulabh Agnihotri on July 15, 2016 at 11:39am

आदरणीया आप बात को शायद समझ नहीं रही हैं। कुछ बिंदु देखें (किंतु पहले यह निवेदन कि सारे बिंदु पढ़-समझ कर फिर कोई टिप्पणी करें।) -
1. प्रत्येक भाषा अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करती है किंतु उन शब्दों का विन्यास वह अपने व्याकरण और अपने अभ्यास के अनुसार करती है। जैसे उर्दू में ब्राह्मण का बिरहमन हो जाता है और हिन्दी में शह्र का शहर या सुब्ह का सुबह। अन्य भाषाओं से शब्द लिये बिना भाषा मृतप्राय हो जाती है जैसा कि संस्कृत के साथ हो रहा है। आज निस्संदेह हम जो हिन्दी बोलते हैं उसने बहुत बड़ी संख्या में शब्द अरबी-फारसी से ग्रहण किये हैं।
आदरणीय इसी को खिचड़ी भाषा कहते है, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण कबीर का साहित्य है।
2. भाषा शब्द ग्रहण करती है अन्य भाषाओं के किंतु उनका संस्कार अपने अभ्यास के अनुसार ही करती है।
अगर आप यह कहती हैं कि रचनाकार एक ही रचना में दो अलग-अलग भाषाओं का व्याकरण प्रयोग कर सकता है तो यह संभव नहीं है।
3. आपकी बात सही है कि गजल हिन्दी और उर्दू दोनों की सांझी है। गजल-गजल है, मैं मानता हूँ आपकी बात। किंतु उसकी अभिव्यक्ति तो किसी न किसी भाषा के माध्यम से ही होती है। यदि ऐसा न होता तो आदरणीय समर साहब शब्द के विन्यास का मसला ही न उठाते। बार-बार उर्दू व्याकरण और डिक्शनरी का हवाला न देते।
4. किसी भी रचना में अलग-अलग भाषाओं के शब्द होना अलग बात है और व्याकरण होना अलग। (हिन्दी और उर्दू के 50 प्रतिशत नहीं, आम बोलचाल के 75-80 प्रतिशत शब्द साझे के हैं, इन्हें अलग नहीं कर सकते पर उन्हे प्रयोग करते समय उनका विन्यास हम अपनी भाषा के अनुसार करते हैं।
5. ‘‘बड़े-बड़े गजलकारांे की गजलों में हिन्दी, उर्दू, फारसी या यों कहिये खिचड़ी भाषा के शब्द मिलेंगे। मेरा मानना यही है कि यदि हम किसी विधा को भाषा की जंजीरों में बांध देंगे तो उसका विकास क्या होगा ? क्या वह विधा संकुचित नहीं हो जायेगी ?’’ आदरणीय यह तो आप समर साहब से कहिये। गजल को उर्दू में तो वही बांध रहे हैं। यदि नहीं बांध रहे होते तो वर्कों पर सवाल खड़ा नहीं करते। शुरू को चार हरुफी शब्द नहीं बताते या ऐसे ही तमाम विवाद खड़े नहीं होते।
6. क्या आप वजन, सुबह, बहर, शहर आदि शब्दों को गलत बतायेंगी ?
7. क्या कबीर साहब अपनी गजलों में ब्राह्मण या ऋतु का प्रयोग करेंगे ? (तमाम शब्द हो सकते हैं किंतु मुझे वाकई उर्दू की बहुत सीमित जानकारी है इसलिये मैं अधिक उदाहरण नहीं दे सकता।) यदि नहीं करेंगे तो फिर आप कैसे कह सकती हैं कि गजल को भाषा की जंजीरों में बांधने का प्रयास वे नहीं हम कर रहे हैं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service