फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन/फ़ेलान
 
 ओज पर तुझको देखना है मुझे
 पत्र में उसने ये लिखा है मुझे
 
 नस्ल-ए-नव से मदद का तालिब हूँ
 बुर्ज नफ़रत का तोड़ना है मुझे
 
 क्या कहूँ ,कब मिलेगा मीठा फल   
 सब्र करना तो आ गया है मुझे
 
 आज तेरे बग़ैर ये जीवन
 नर्क जैसा ही लग रहा है मुझे
 
 लाख दुश्वारियाँ हों, जाऊँगा
 इश्क़ तेरा बुला रहा है मुझे
 
 नर्म गुफ़्तार से "समर" देखो 
 आज फिर ज़ैर कर लिया है मुझे
 
 _________
 
 ओज :- ऊँचाई
 नस्ल-ए-नव :- नई नस्ल
 बुर्ज :- गुम्बद
 गुफ़्तार :- बोलचाल
 
 "समर कबीर"
 मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आहा ..क्या कहने ...
बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है जनाब समर साहब | बधाई कुबूल करें |
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