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ग़ज़ल 
गा गा लगा लगा/ लल/ गा गा लगा लगा
.

झीलों में ऐसे..... चाँद डिबोता हूँ आज भी,
आँखों में रख के आप को रोता हूँ आज भी.  
.
अब तक दरख्त जितने उगाए, बबूल हैं,
दिल में मगर मैं यादों को बोता हूँ आज भी.
.
आदत में था शुमार तेरे साथ जागना,
तेरे बगैर देर से सोता हूँ आज भी.
.
नमकीन पानियों से जो रंगत निखरती है,
रुख़सार आँसुओं से मैं धोता हूँ आज भी.
.
काँधे पे इक सलीब उठाए फिरा करूँ,
नाकामियों का बोझ मैं ढ़ोता हूँ आज भी.
.

उसका पता मुझे जो मिला वो ग़लत मिला,  
ख़ुद को तलाश-ए-यार में खोता हूँ आज भी.
.
जुगनू नहीं, चिराग़ नहीं शम्स भी नहीं,   
लेकिन तेरे ही “नूर” सा होता हूँ आज भी.   
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on February 9, 2016 at 8:43am

शुक्रिया आ. मनोज जी 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on February 9, 2016 at 1:26am

आदरणीय निलेश जी शानदार ग़ज़ल कही है आपने शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं . 

221-2121-1221-212

गा गाल /गाल गाल/ लगा गाल / गा लगा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 8, 2016 at 6:38pm

लाजवाब निलेश भाई शानदार ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Samar kabeer on February 8, 2016 at 5:55pm
जनाब निलेश'नूर'जी आदाब,वाह बहुत ख़ूब मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं !
Comment by Sushil Sarna on February 8, 2016 at 3:14pm

झीलों में ऐसे..... चाँद डिबोता हूँ आज भी,
आँखों में रख के आप को रोता हूँ आज भी.
.
अब तक दरख्त जितने उगाए, बबूल हैं,
दिल में मगर मैं यादों को बोता हूँ आज भी.

वाह आदरणीय वाह आपने अपनी इस ग़ज़ल में बहुत ही दिलकश अशआर सजाये हैं। मजा आ गया। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by मनोज अहसास on February 8, 2016 at 11:44am
बहुत खूब
सर
आप बहुत दिन बाद आये पर खूब आये
सादर

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