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मत कहो! कि सत्य फिर विचार लूँ ज़रा.................(डॉ० प्राची सिंह)

बादलों की ओट से उधार लूँ ज़रा
चाँद आज तुझको मैं निहार लूँ ज़रा..

कँपकँपा रहे अधर नयन मुँदे मुँदे
साँस की छुअन से ही पुकार लूँ ज़रा..

शब्द शून्य सी फिज़ा हुई है पुरअसर 
सिहरनों से रूह को सँवार लूँ ज़रा..

चाँद भी पिघल के कह रहा मचल मचल 
चाँदनी में प्यार का निखार लूँ ज़रा..

अब महक उठे बहक उठे प्रणय के पल
इन पलों में ज़िन्दगी गुज़ार लूँ ज़रा..

वक्त रुक! न धड़कनों सा तेज़ तू मचल
ख्वाब एक यकीन में उतार लूँ ज़रा..

झूठ है, तो क्या हुआ? है ज़िन्दगी मगर
मत कहो! कि सत्य फिर विचार लूँ ज़रा.

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Samar kabeer on September 28, 2015 at 11:36pm
मोहतरमा प्राची सिंह जी,आदाब,आपने ग़ज़ल के अरकान नहीं लिखे ,फिर भी आपकी ग़ज़ल दिल को मोह रही है,सुन्दर ख़यालात से सजी इस ग़ज़ल के लिये दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 28, 2015 at 7:11pm

ग़ज़ल पर आप सबकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रया के लिए धन्यवाद आदरणीय डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी , धर्मेन्द्र कुमार जी, नीरज कुमार जी , रवि शुक्ला जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 28, 2015 at 7:09pm

धन्यवाद जयनित वर्मा जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 28, 2015 at 7:08pm

शेर दर शेर आपकी पाठकीय प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद आ० पंकज मिश्रा जी 

Comment by Ravi Shukla on September 28, 2015 at 1:45pm

आदरणीया प्राची जी सुन्‍दर भाव पूर्ण रचना । ग़ज़ल के पंखो के साथ कोमल भावों की सरस उड़ान । बधाई ।

Comment by Neeraj Neer on September 28, 2015 at 12:24pm

बहुत ही कोमल भावों के साथ सौंदर्य बोध में पकी सुंदर रचना ... 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 28, 2015 at 11:34am

अच्छे अश’आर हुए हैं आ. प्राची जी, दाद कुबूलें

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 28, 2015 at 10:08am

आ० प्राची जी

आपकी यह्  गजल मेरे लिए पहली है . बहुत ही सुकोमल भावों से सजी  बह्र पर भी खरी दिखती है  आपको इस रचना पर मेरी बधाई .

Comment by जयनित कुमार मेहता on September 27, 2015 at 10:49pm
आदरणीय प्राची जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है..
हिंदी और उर्दू का बराबर मात्रा में मिश्रण रोचक लगा,..कृपया बधाई स्वीकार करें!!
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 27, 2015 at 10:04pm
बादलों की ओट से उधार लूँ ज़रा
चाँद आज तुझको मैं निहार लूँ ज़रा.. बहुत खूब।।

कँपकँपा रहे अधर नयन मुँदे मुँदे
साँस की छुअन से ही पुकार लूँ ज़रा..सजीव चित्रण

शब्द शून्य सी फिज़ा हुई है पुरअसर
सिहरनों से रूह को सँवार लूँ ज़रा..यहाँ तो आपनें प्रेम की परम अनुभूति प्रस्तुत कर दी।

चाँद भी पिघल के कह रहा मचल मचल
चाँदनी में प्यार का निखार लूँ ज़रा.. को निखार लूँ ज़रा

अब महक उठे बहक उठे प्रणय के पल
इन पलों में ज़िन्दगी गुज़ार लूँ ज़रा..हार्दिक अभिव्यक्ति

वक्त रुक! न धड़कनों सा तेज़ तू मचल
ख्वाब एक यकीन में उतार लूँ ज़रा..बढ़िया भाव

झूठ है, तो क्या हुआ? है ज़िन्दगी मगर
मत कहो! कि सत्य फिर विचार लूँ ज़रा...कल्पना में सत्यानुभूति।।

एक बढ़िया भावप्रवण ग़ज़ल के लिए बधाई।।

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