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दफ़्तर के गेट के बाहर अपनी स्कूटी निकाल ही रही थी कि एक बूढ़ी भिखारिन ने अपना भीख का कटोरा उसके आगे कर दिया ।वह उसे देखते ही पहचान गई , क्योंकि उसके मौहल्ले में भी अक़्सर वह भीख माँगा करती थी । उसने  चिल्लर कटोरे में डाल कुछ अनुमानते हुए चोर नज़रें उसके पैरों पर टिका दीं ।  

" ये क्या ? फिर नंगे पैर ? वो चप्पल कहाँ हैं , जो परसों ही मैंने पहनने को दी थीं ?

" घर रख दी बाईजी । उसी रोज़ कहा था , पैसा-लत्ता दे दो बस । पर आप मानी ही नहीं । "

" एक तो तुम्हारे बुढ़ापे पे तरस खा सिर्फ दो बार पहनी कीमती चप्पलें झट उठाके दे दीं , और तुम हो कि ...।"

" नाहक़ गुस्सा होती हैं बाईजी ।पापी पेट का सवाल है । जिसके पैर मखमल पे खड़ें हों उसे भीख कौन देगा भला ।"

मौलिक व अप्रकाशित ।

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Comment by shashi bansal goyal on August 28, 2015 at 7:59pm
आद0 Harash Mahajan जी हार्दिक आभार एवं धन्यवाद ।
Comment by shashi bansal goyal on August 28, 2015 at 7:57pm
आद0 तेजवीर सिंह जी हार्दिक आभार एवं धन्यवाद ।
Comment by Ravi Prabhakar on August 28, 2015 at 8:46am

बहुत सार्थक लघुकथा हुई है आदरणीय शशि जी । कथा पंच लाइन भी प्रभावशाली बनी है। सादर शुभकामनाएं


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 28, 2015 at 1:40am

आदरणीया शशि जी हमेशा की तरह शानदार लघुकथा की प्रस्तुति. हार्दिक बधाई 

Comment by Archana Tripathi on August 28, 2015 at 1:28am
बेहद उम्दा जवाब भिखारिन का ,खूबसूरत रचना के लिए हार्दिक बधाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2015 at 10:02pm

सही कहा अच्छे कपड़ों अच्छे रख रखाव से ही लोग औकात नापते हैं ,लघु कथा के माध्यम से सटीक कटाक्ष किया है |बहुत बहुत बधाई शशि जी 

Comment by maharshi tripathi on August 27, 2015 at 8:51pm

आधुनिक मानसिकता यही है ,आदमी की गरीबी उसके कपडे से ही देखते हैं ,,अच्छी रचना है आ. shashi bansal जी |

Comment by Harash Mahajan on August 27, 2015 at 2:12pm

आदरणीय शशि जी....बहुत ही सच्ची और बेनकाब करती हुई बात कही आपने इस लेख के द्वारा | " नाहक़ गुस्सा होती हैं बाईजी ।पापी पेट का सवाल है । जिसके पैर मखमल पे खड़ें हों उसे भीख कौन देगा भला ।".......एक ही लाइन काफी है दिल में उतरने को...बहुत खूब !! दाद !! सादर !!

Comment by TEJ VEER SINGH on August 27, 2015 at 12:07pm

आदरणीय शशि जी, हार्दिक बधाई , शानदार लघुकथा के लिये!अगर सूट बूट पहन कर भीख मांगोगे तो कौन भीख देगा!पुनः बधाई!

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